Wednesday, October 31, 2012

दीपाली सांगवान की कविताएँ


दीपाली के पास जितना प्रेम का औदात्य है उतना ही मनुष्य  होने का औचित्य भी. अपने कथ्य में ख्वाब और हक़ीकत की पड़ताल के लिए वह यात्रा करती हैं और अपने पड़ाव में पाती हैं कि "ख्वाब अपने होते है और हक़ीकत पराई" फिर भी उम्मीद इनके यहाँ  एक ज़िद की तरह ज़िंदा मिलती हैं. और इस उम्मीद का प्राप्य भी इतना कोरा और मासूम नहीं है कि जो मिले उसे स्वीकार कर ले. तभी तो मुलाकात के लिए बेचैन होने के बाद भी कहती हैं " तो ये बेहतर है कि हम नहीं मिले / मुद्द्तों बाद जो ऐसे मिले." इनकी  यह तलाश, यह नयापन  और बोध औरो से इन्हें अलगाता हैं. इनकी कविताओं की सबसे खास बात लय की हैं जो अपने आंतरिक प्रवाह में इतनी डूबी  है कि उसका बाह्य कब उससे समागम कर लेता है पता नहीं चलता. शायद इसीलिए पढ़ते हुए इनकी कविताएँ  शेर और रूबाइयों की तरह महसूसाते है. जनराह पर प्रस्तुत है इनकी पाँच कविताएँ.






1. आवाज़ 


तेरी आवाज़ क्यूँ नहीं मिलती 

कहते हैं फ़ज़ाओं में 
अलफ़ाज़ तैरते रहते हैं  
जुबां से फिसल जाने के बाद 

वही है रेशमी चांदनी अब भी 
वही है नर्म संदली सी हवा 
गेसू शब् अब भी 
उतनी ही तारीक है 
इसके ही किसी ख़म में जा उलझी होगी 
तेरी आवाज़ 
मुझे देख कर छुपी होगी 

है यकीं मुझको वो यहीं होगी 
खामशी ओढ़ कर के सोयी नहीं 
तेरी आवाज़ अब भी जिन्दा है 

वरना इक वक्फा ही तो गुज़रा है 
अभी तो तुमको ठीक से मैंने 
अलविदा भी नहीं कहा जानाँ  

तेरी आवाज़ जो मिल जाये मुझे 
बाँध के रख लूँ उसको दामन से 
आखिरी लफ्ज़ हैं तेरे हमदम 
ऐसे जाया कहीं हो जाए 

ढूँढती फिरती हूँ हवाओं में 
चाँद के, तारों के दालान में 
तेरी आवाज़ पर नहीं मिलती 
तेरी आवाज़ क्यूँ नहीं मिलती...!!


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2.
जाड़े 


फिर वही दिन
लौट आये शायद
वही जाडे
सुबह की रंग बिरंगी ओस
और तीखी मीठी धूप

येः दिन तब भी ऐसे ही थे
जब मैं ओस की बूँदें
ऊँगली पर सजाती थी

पानी की यही खासियत है
हर रंग में ढल जाता है
'आब' शायद यूँ ही नाम दिया था तुमने मुझे..

तुम्हारे रंग में ढली तो तुम सी हो गई.. 

=====

ठिठुरते हुए ठंडे हाथ
मेरी तरफ बढा कर कहते थे
"अपनी हथेलियों की थोड़ी नर्माइश दे दो"
मैं झट से थाम लेती थी 
हथेलियाँ तुम्हारी 

तुम्हारी हथेलियाँ अब भी तो 
ठण्ड से ठिठुरती होंगी ना??
===

'अदरक वाली चाय
और गोभी के परांठे'
फरमाइश कर के बनवाते थे 
मेरे तो हर प्याले पर
तुम्हारे निशान बाकी हैं

तुम्हारी रसोई भी तो याद करती होगी ना मुझे???
===

'जूठा खाने से प्यार बढ़ता है'
हर बार येः बात कह कर
मेरी कोल्ड ड्रिंक छीन कर पी जाते थे 

बड़ा झूठ कहते थे..
===

ख्वाब और हकीकत में
फर्क बस इतना होता है
ख्वाब अपना होता हैं
और हकीकत पराई

अच्छा होता तुम ख्वाब ही रहते 
==

वक़्त
सब कुछ बदल देता है
येः एहसास भी वक़्त ही कराता है

वही मौसम 
वही जगह
और वही एहसास लिए
सोचती हूँ

काश ! वक़्त भी वही होता...!!


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3.
मुलाकात
 


मुद्दतों बाद तुझसे दोस्त आज कैसे मिलें ?
कुछ तकल्लुफ की बेडियों में हैं जकडे पाँव
कुछ ता'आल्लुक की डोर फासलों से झीनी हुई
ओढ़ रखा है तूने मैंने नकाब अना जो
अपने पिन्दार पे उसकी परत है फैली हुई

तुझसे दिल से गले मिलूं तो गिले धुल जाएँ
आज दिल आंसुओं से भीग नर्म हो जाए
मौसमों का हिसाब रखें फिर
किसने कैसे येः दिन बिताएं हैं
किसने कुर्बत की गजलें जोड़ी हैं
किसने हिज्राँ में गीत गाये हैं

प् आज ये नहीं है जो कल था
या तो ये झूठ है या वो छल था
तेरी मेरी तो एक हस्ती थी
आज दो हो गए हैं तो कैसे ?
दिल ये चाहे के नोच दूँ चेहरे
दिल ये बदलें हैं तो बदले कैसे ?

हमने सोचा था ये वक़्त इक दिन
रंग बदलेगा तो अजाब होगा
जो गुजारे थे साथ में लम्हे
वक़्त वो सच नहीं फिर खाब होगा
दश्त सेहरा में तिशनगी जैसे
आज मिलते हैं अजनबी जैसे

तो येः बेहतर है की हम ही मिलें
मुद्दतों बाद जो हम ऐसे मिलें !!


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4. आखिरी मुलाकात 

आज की रात बड़ी खुशनसीब है जानाँ 

तेरे रुखसार से ढलका जो वक़्त का पर्दा
आज कुछ पल को दरख्शा हुई है जीस्त मेरी
लौट आती है जाके दूर तलक बीनाई
तेरे मेरे सिवा याँ कोई नहीं कोई नहीं..

तेरी आमद से हुई शीरीं तल्खी अय्याम 
आज तरसी हुई उम्मीद की सा'अत आई
एक अरसे से तेरी दीद की मन्नत मांगी
आज आगोश में मेरे वही मोहलत आई..

आज की रात तुझे दिल में बसा लूँ जानाँ
अपनी तरसी हुई पलकों में छुपा लूँ तुझको
क्या पता कल येः वक़्त हो के हो
आज चाहूँ के तेरा अक्स चुरा लूँ जानाँ..

आज की रात जिक्र दर्द कर तुझको कसम
फिर नहीं लौट के आयेंगे येः लम्ह कुर्बत
आज की रात मेरी पलकों पे पलकें रख दे
फिर कभी आँख से बरसेगी नहीं यूँ चाहत..

इस से पहले के रात बीते सहर हो जाए
आज जीने दे मुझे साथ तेरा जानाँ
थाम ले हाथ मेरा आखिरी इस पल के लिए
आज की रात बड़ी खुशनसीब है जानाँ ..
आज की रात बड़ी खुशनसीब है जानाँ...!!


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5.
हिज्र


नहीं होगा 
किसी ख़ुशी का नामकरण 
ना जन्मेगी 
उम्मीद कोई 

तरसेंगे अब दो बूँद प्रेम को 
उम्र से लम्बा पड़ेगा 
अकाल एहसासों का 
बंजर होगा दिल 
आँखें फाड़ के देखेगा आकाश 
और बरसायेगा नमक

गले से लग के सिसकियाँ बहाने का मौसम 
कब का जा चुका 
छीन ले गया आवाज़ 
वक़्त का फरमान 

कैसी दस्तक हुई 
कि दरवाज़ा खोलने के साथ 
ज़िन्दगी लांघ गई देहलीज 

ये बेसुवाद खालीपन 
मेरी थाली में किसने परोस दिया

पलकों के किवाड़ खुलेंगे
हर आहट के साथ 
लहराएगा साया एक 
और फ़ैल जायेगा घुप्प अँधेरा 
फिर तुम चाहे चाँद लाके रखना 
मेरे माथे पर 
मैं   जागूंगी !