मिता दास बांग्ला और हिंदी दोनों में लिखती हैं.
साथ ही अनुवाद का काम भी करती हैं. प्रस्तुत है उनकी दो लघु कथाएँ.
जाल.
डॉ ०
कैलाश बेड रूम
से निकलते ही
घर की नौकरानी से
टकरा जाते हैं
, और हडबडाकर डॉ
.कैलाश अपनी पत्नी
मीनल को आवाज़
लगाते हैं
" जरा देखना मेरा
स्टेथोस्कोप कहाँ रखा
है ?"
मीनल प्रसव के लिए मायके गई हुई थी अभी कुछ ही दिन हुए लौटी है । उन दिनों डॉ ० कैलाश एक हार्ट सर्जरी में व्यस्त थे अपने ही नर्सिंग होम में । उन्होंने अपने एक दोस्त को फोन पर ही हिदायत दे दी थी " जरा देख लेना पियूष , मेरा आना असंभव है ...बड़ा ही कोंम्पलीकेटेड केस है , पैसे मैं एडवांस में ले चुका हूँ । यार तू भी एक अच्छा डॉ० है मुझसे अच्छा ही ट्रीटमेंट करेगा , मुझे पता है यार सब ठीक हो जायेगा ...चल अच्छा मैं रखता हूँ ।" प्रसव से लौटी मीनल जरा कमजोर हो गई थी । पूरे टाइम वाली नौकरानी थी उसकी , उसके संग सारे काम मीनल का झटपट निपट जाता है ।
जब मीनल
मायके गई थी,उसी दौरान
उस नौकरानी ने
इस घर में
कई ऐसे राज़
देखे जिसे बयाँ
करना मुश्किल था
, क्या पता मीनल विश्वास भी करती या
नहीं । नौकरानी ने
मीनल को कुछ
नहीं बताया ।
पर वह डॉ
० के निकट
जाने से कतराने
लगी । डॉ
० कैलाश को
भी लगा शायद
नौकरानी ने जरूर
कुछ देख लिया
है । पर
वह करे भी
तो क्या ....क्या
पूछे उससे की
वह क्या जानती
है ।
मीनल फिर मायके गई , अपनी मौसेरी बहन की शादी पर । इस बार नौकरानी ने सोचा की वह सच जान कर ही रहेगी , फिर मैडम के आने पर सब सच - सच बयाँ कर देगी । इस बार उसने शनिवार के रात को तीन चार दोस्तों के साथ डॉ ० को घर की सीढियां चढते देखा । डरती - डरती वह उनके कहने पर ग्लास , प्लेट ,चम्मच काँटा - छुरी , सोडा, आइस और सलाद रख गई । डॉ ० ने कहा कुछ जरुरत होगी तो हम खुद ले लेंगे तुम जाकर सो जाओ । नौकरानी अपने सर्वेंट रूम ने जाकर सो रही । पर उसे नींद कहाँ ...तेज़ - तेज़ म्यूजिक , हा हा ही ही और ग्लास फूटने की आवाज़ और तेज़ - तेज़ रौशनी क्लिक की आवाज़ और न जाने कैसा शोर ....उसे बड़ी देर बाद नींद आई । पिछली बार भी इसी तरह का ही शोर था पर इस बार कुछ और तरह की आवाजें भी घुल मिल गई थी । और न जाने कब क्या - क्या सोचते - सोचते उसे नींद आ ही गई ।
सुबह जब उसने चाय की ट्रे ले उस कमरे में घुसी तो देखा की सभी सुध बुध खोये नींद और शराब के नशे में चूर लुढ़के पड़े हैं । और सी० डी० प्लेयर पर एक फिल्म चल रही है तेज़ और भद्दी आवाज़ के साथ । ऐसी फिल्म नौकरानी ने कभी नहीं देखी थी । वह घबराकर कमरे से बाहर निकल आई । उसे निकलते डॉ ० कैलाश ने देख लिया था । उसने सोचा की वह यह सब मीनल को बता देगी , फिर उसका धंधा चौपट ..." हूँ ....करूँ तो क्या करूँ " . इसका भी कोई जबरदस्त इलाज सोचना पड़ेगा ...." एक भद्दी सी हंसी होंठों पर खेल गई ।
शाम का वक़्त था नौकरानी ने फ्रिज खोलकर चोरी से एक कोक जैसा कुछ ड्रिंक निकाल और अपने ग्लास में उड़ेल कर एक ही सांस में पी गई । वह नहीं समझ पाई डॉ ० साहब की चाल को । थोड़ी ही देर में उसकी आँखें बुझने लगी । चाल में भी एक लडखडाहट भर गई । उसने पूरे कमरे को एक भरपूर नज़र से देखा , सारा का सारा कमरा घूम रहा था और वह तेज़ लाइटें ऑन हो चुकी थी और एक कैमरा सर पर घूम रहा था । जाल की तगड़ी बुनावट पर झल्ला कर रह गई । हाथ पांव पटके कंठ से कोई आवाज़ भी नहीं निकली । उसने महसूस किया की वह कैद हो गई है । तवे पर वह एक रोटी की तरह घूम रही थी । शरीर तंदूर पर चिकन की तरह ही भुन रहा था ।
ढोलची.
गणेशी मसान से ढोल गले में लटकाए और दोनों बाजुओं को हवा में बेकाबू सा लहराता -, झूमता - झामता कोठारी को लौट रहा था | उसके कदम बेहिसाब उठ रहे थे | उसका मन आज न जाने कौन सा धुन अलाप रही थी | थोड़ी - थोड़ी देर में वह अपने आप ही कुछ - कुछ बडबडाता चल रहा था |
" नहीं .....नहीं .....अब कभिच्च नहीं बजाऊंगा , चाहे भूख से क्यूँ न मरना पड़े | पैसे के लाने तो कभिच्च न बजाऊंगा किसी की मैयत पे " | राह चलते सभी राहगीर उसे पलट - पलट कर ताक रहे थे | जब वह शनिचरी हाट से गुजरा तो दिलावर चचा ने पीछे हे हांक लगाई , बोले -------- " गणेशी ......अरे हो गणेशी , लगता है आज तो बहुत गजबे मालमत्ता हाथ लगे है तभिच्च मैं भी कहूँ साल्ला आज गणेशी के पैर काहे झूम रहा , जुबान काहे न काबू धर रहा | "
" नहीं न चचा नही , कुछु नही हाथ लगा जो भी मिला रहा हम फैंक आये उनके मुहं पे | "
" पर बड़ा झूम झाम रहा , पांव तो जमीन पर धर ही नहीं रहे तेरे , काहे झूठ बोल रहा रे ........बूढ़े चचा से...? "
" न चचा न ,..... अब कभिच्च न बजाईब ..... न ..न ...कभिच्च नही | " किसी तरह मन मसोस कर बोला कि एक क्षण को दिलावर चचा सकपका गए | पीठ पर गणेशी के हल्का सा हाथ धर कर बोले -----" गणेशी लल्ला... नई बजाईब तो खइबे का.... ओखर लाने ही तो सब टंटा , अब तो तुम्हरा बाबूजी भी तो जिन्दा न बचें है लल्ला ..... घर भर .सबके पेट में का भकोसेगा ......पेट ही तो दुसमन ठहरा हम गरीबन का | "
" न.....चचा नहीं , अब कभिच्च नहीं न बजाईब ...... मन में इक फांस खुब गई है , मरने के बाद मसान , मसान के बाद नर्मदा , नर्मदा में अस्थि सिरा कर खाली हाथ लौटना , ढोलची हूँ तो का भया जिया हमरा भी जलता है | एक आग की लपट उठती है , और सारा सरीर खाक ..........धू - धू कर जलता है | सोच रहे हम की ये साला कैसी जिनगी भला ------ जब तक जियो, जिनगी भर पेट की खातिर लात जूते खाओ ,एडियाँ रगड़ - रगड़ कर पिसे जोड़ो अऊ ओ पिसे के लाने भाई - भाई में खूना - खच्चर , बेटे बहू से दो मुट्ठी भात के लाने करेजा जला - जला कर धुन्धुआ जाती बूढी आँखें | अब जाके अस्सी साल में मरा बुढहू { बुड्ढा } साले लोग दिन रात मेवा , मिठाई और फल बाँट रहे हैं गरीबो में | अब श्राद्ध के दिन बाम्हनो की पंगत बिठाएंगे .....ढेरों फल , मेवा , मिठाई नर्मद्दा में चढ़ाएंगे , और कहेंगे ..." बाबूजी भूल - चूक माफ़ | खा लो और तृप्त हो लो | अब बुढाऊ खाए क्या ? बुड्ढे के मुहं में दान्त नहीं , पेट में आंत नहीं ......नहीं जनते क्या साले लोग की सीने में सांस नहीं | दलिद्दर साले .........अब दान पुन .....जीते जी दो मुट्ठी भात को कितना रुलाया | अब मर गए तो ढोलची बुलवाकर पोते - पोती , नाती - नतनी नचाएंगे ........देखो अस्सी साल जीकर मरा है ...तुम्हरा नाना , तुम्हरा दद्दा | थू - थू है ..........ऐसी जिनगी और ऐसी मौत पर ..........."
मिता दास के बारे में -
जन्म -------१२ जुलाई सन १९६१
स्थान -------जबलपुर [म.प्र]
सम्प्रति ------स्वतंत्र लेखन
विधा --------कविता ,कहानी ,आलेख ,स्तंभकार ,रेखांकन ,अनुवाद,
साक्षात्कार लेना , संपादन करना आदि |
संग्रह -------- अंतरमम
[काव्य -संग्रह ] बांग्ला भाषा में [ सन ----२००३ में ]
संकलित ------ कहानी [हरेली ] कथा संग्रह में ,
कवितायेँ [हम बीस सदी के ] काव्य संग्रह में ,
कवितायेँ [नवा अंजोर के नवा किरण ] काव्य & कथा संग्रह में ,
सारा भारत काव्य संग्रह में ------ कविता संग्रहित [बांग्ला भाषा ],
साहित्य सेतु काव्य संग्रह में ------ कविता संग्रहित [बांग्ला भाषा में ]
सम्पादित ------- संग्रह ---- हम बीस सदी के [हिंदी काव्य संकलन के संपादन मंडल में ]
पत्रिका ---- धरातल के स्वर ...... पाक्षिक [हिंदी ]
मुक्त कंठ .......... ६ मासिक पत्रिका
[हिंदी ]
छत्तीसगढ़ आसपास ....... मासिक पत्रिका [हिंदी ]
सेतु .............. मासिक पत्रिका
[हिंदी विभाग ] बांग्ला पत्रिका
पुरष्कार ------------ हिंदी कहानी प्रतियोगिता में ......कहानी ------''पहलू यह भी '' पुरस्कृत
सम्मान --------------[१] हिंदी सेवी सम्मान
''कवि रोबिन सुर ''......... उत्तर बंग नाट्य जगत सिलिगुरी[
नोर्थ बंगाल ] सन २००३ में
[२] ''हिन्दी विद्या रत्न भारती सम्मान
'' कादंबरी साहित्य परिषद्
चिरिमिरी हिल्स
कुरासिया कोरिया [छ .ग .]
[३] '' डा . खूबचंद बघेल सम्मान
'' २००५ में
[४] प्रसश्ती पत्र
'' हिंदी साहित्य हेतु '' २००५ में
[५] '' राष्ट्रभाषा अलंकरण '' २००८ में
प्रसारण ------------- दूरदर्शन
------[ भोपाल से ] स्वरचित गीतों और नज्मो का प्रसारण
१९९९ में , गायिका ------- तपोशी नागराज ,
संगीत --------- मुरलीधर नागराज
.
दूरदर्शन ------- रायपुर से स्वरचित कविताओं का पाठ
आकाशवाणी ------- रायपुर से विगत पंद्रह [१५ ] वर्षों से लगातार
स्वरचित कविताओं का पाठ |
पता ----- ६३/४ नेहरूनगर पश्चिम , भिलाई , छत्तीस
गढ़ ...पिन ---- ४९०००२०
फोन नंबर --- 08871649748 , 09329509050