Sunday, August 18, 2013

मिता दास की लघु कथाएँ.


मिता दास बांग्ला और हिंदी दोनों में लिखती हैं. साथ ही अनुवाद का काम भी करती हैं. प्रस्तुत है उनकी दो लघु कथाएँ.


 जाल.
 डॉ कैलाश बेड रूम से निकलते ही घर की नौकरानी से टकरा जाते हैं ,  और हडबडाकर डॉ .कैलाश अपनी पत्नी मीनल को आवाज़ लगाते हैं " जरा देखना मेरा स्टेथोस्कोप कहाँ रखा है ?"

           
मीनल प्रसव के लिए मायके गई हुई थी अभी कुछ ही दिन हुए लौटी है उन दिनों डॉ कैलाश एक हार्ट सर्जरी में व्यस्त थे अपने ही नर्सिंग होम में उन्होंने अपने एक दोस्त  को फोन पर ही हिदायत दे दी थी " जरा देख लेना पियूष , मेरा आना असंभव है ...बड़ा ही कोंम्पलीकेटेड केस है , पैसे मैं एडवांस में ले चुका हूँ यार तू ​ भी एकअच्छा डॉ० है मुझसे अच्छा ही ट्रीटमेंट करेगा , मुझे पता है यारसब ठीक हो जायेगा ...चल अच्छा मैं रखता हूँ " प्रसव से लौटी मीनल जरा कमजोर हो गई थी पूरे टाइम वाली नौकरानी थी उसकी , उसके संग सारे काम मीनल काझटपट निपट जाता है

              
जब मीनलमायके गई थी,उसी दौरान उस नौकरानी ने इस घर में कई ऐसे राज़ देखे जिसे बयाँ करना मुश्किल था , क्या पता मीनल विश्वास भी करती या नहीं नौकरानी ने मीनल को कुछ नहीं बताया पर वह डॉ के निकट जाने से कतराने लगी डॉ कैलाश को भी लगा शायद नौकरानी ने जरूर कुछ देख लिया है पर वह करे भी तो क्या ....क्या पूछे उससे की वह क्या जानती है

                 
मीनल फिर मायके गई , अपनी मौसेरी बहन की शादी पर इस बार नौकरानी ने सोचा की वह सच जान कर ही रहेगी , फिर मैडम के आने पर सब सच - सच बयाँ कर देगी इस बार उसने शनिवार के रात को तीन चार दोस्तों के साथ डॉ को घर की सीढियां चढते देखा डरती - डरती  वह उनके कहने पर ग्लास , प्लेट ,चम्मच काँटा - छुरी , सोडा, आइस और सलाद रख गई डॉ ने कहा कुछ जरुरत होगी तो हम खुद ले लेंगे तुम जाकर सो जाओ नौकरानी अपने सर्वेंट रूम ने जाकर सो रही पर उसे नींद कहाँ ...तेज़ - तेज़ म्यूजिक , हा हा ही ही और ग्लास फूटने की आवाज़ और तेज़ - तेज़ रौशनी क्लिक की आवाज़ और जाने कैसा शोर ....उसे बड़ी देर बाद नींद आई पिछली बार भी इसी तरह का ही शोर था पर इस बार कुछ और तरह की आवाजें भी घुल मिल गई थी और जाने कब क्या - क्या सोचते - सोचते उसे नींद ही गई

                   
सुबह जब उसने चाय की ट्रे ले उस कमरे में घुसी तो देखा की सभी सुध बुध खोये नींद और शराब के नशे में चूर लुढ़के पड़े हैं और सी० डी० प्लेयर पर एक फिल्म चल रही है तेज़ और भद्दी आवाज़ के साथ ऐसी फिल्म नौकरानी ने कभी नहीं देखीथी वह घबराकर कमरे से बाहर निकल आई उसे निकलते डॉ कैलाश ने देख लिया था उसने सोचा की वह यह सब मीनल को बता देगी , फिर उसका धंधा चौपट ..." हूँ ....करूँ तो क्या करूँ ​" . इसका भी कोई जबरदस्त इलाज सोचना पड़ेगा ...." एक भद्दी सी हंसी होंठों पर खेल गई

                     
शाम का वक़्त था नौकरानी ने फ्रिज खोलकर चोरी से एक कोक जैसा कुछ ड्रिंक निकाल और अपने ग्लास में उड़ेल कर एक ही सांस में पी गई वह नहीं समझ पाई  डॉ साहब की चाल को थोड़ी ही देर में उसकी आँखें बुझने लगी चाल में भी एक लडखडाहट भर गई उसने पूरे कमरे को एक भरपूर नज़र से देखा , सारा का सारा कमरा घूम रहा था और वह तेज़ लाइटें ऑन हो चुकी थी और एक कैमरा सर पर घूम रहा था जाल की तगड़ी बुनावट पर झल्ला कर रह गई हाथ पांव पटके कंठ से कोई आवाज़ भी नहीं निकली उसने महसूस किया की वह कैद हो गई है तवे पर वह एक रोटी की तरह घूम रही थी शरीर तंदूर पर चिकन की तरह ही भुन रहा था

 ढोलची.

गणेशी मसान से ढोल गले में लटकाए और दोनों बाजुओं को हवा में बेकाबू सा लहराता -, झूमता - झामता कोठारी को लौट रहा था | उसके कदम बेहिसाब उठ रहे थे | उसका मन आज जाने कौन सा धुन अलाप रही थी | थोड़ी - थोड़ी देर में वह अपने आप ही कुछ - कुछ बडबडाता चल रहा था

 " नहीं .....नहीं .....अब कभिच्च नहीं बजाऊंगा , चाहे भूख से क्यूँ मरना पड़े | पैसे के लाने तो कभिच्च बजाऊंगा किसी की मैयत पे " | राह चलते सभी राहगीर उसे पलट - पलट कर ताक रहे थे | जब वह शनिचरी हाट से गुजरा तो दिलावर चचा ने पीछे हे हांक लगाई , बोले -------- " गणेशी ......अरे हो गणेशी , लगता है आज तो बहुत गजबे मालमत्ता हाथ लगे है तभिच्च मैं भी कहूँ साल्ला आज गणेशी के पैर काहे झूम रहा , जुबान काहे काबू धर रहा | "

" नहीं चचा नही , कुछु नही हाथ लगा जो भी मिला रहा हम फैंक आये उनके मुहं पे | "
" पर बड़ा झूम झाम रहा , पांव तो जमीन पर धर ही नहीं रहे तेरे , काहे झूठ बोल रहा रे ........बूढ़े चचा से...? "
" चचा ,..... अब कभिच्च बजाईब ..... .. ...कभिच्च नही | " किसी तरह मन मसोस कर बोला कि एक क्षण को दिलावर चचा सकपका गए | पीठ पर गणेशी के हल्का सा हाथ धर कर बोले -----" गणेशी लल्ला... नई बजाईब तो खइबे का.... ओखर लाने ही तो सब टंटा , अब तो तुम्हरा बाबूजी भी तो जिन्दा बचें है लल्ला ..... घर भर .सबके पेट में का भकोसेगा ......पेट ही तो दुसमन ठहरा हम गरीबन का | " 
" .....चचा नहीं , अब कभिच्च नहीं बजाईब ...... मन में इक फांस खुब गई है , मरने के बाद मसान , मसान के बाद नर्मदा , नर्मदा में अस्थि सिरा कर खाली हाथ लौटना , ढोलची हूँ तो का भया जिया हमरा भी जलता है | एक आग की लपट उठती है , और सारा सरीर खाक ..........धू - धू कर जलता है | सोच रहे हम की ये साला कैसी जिनगी भला ------ जब तक जियो, जिनगी भर पेट की खातिर लात जूते खाओ ,एडियाँ रगड़ - रगड़ कर पिसे जोड़ो अऊ पिसे के लाने भाई - भाई में खूना - खच्चर , बेटे बहू  से दो मुट्ठी भात के लाने करेजा जला - जला कर धुन्धुआ जाती बूढी आँखें | अब जाके  अस्सी साल में मरा बुढहू { बुड्ढा } साले लोग दिन रात मेवा , मिठाई और फल बाँट रहे हैं गरीबो में | अब श्राद्ध के दिन बाम्हनो की पंगत बिठाएंगे .....ढेरों फल , मेवा , मिठाई नर्मद्दा में चढ़ाएंगे , और कहेंगे ..." बाबूजी भूल - चूक माफ़ | खा लो और तृप्त हो लो | अब बुढाऊ खाए क्या ? बुड्ढे के मुहं में दान्त नहीं , पेट में आंत नहीं ......नहीं जनते  क्या साले लोग की सीने में सांस नहीं | दलिद्दर साले .........अब दान पुन .....जीते जी दो मुट्ठी भात को कितना रुलाया | अब मर गए तो ढोलची बुलवाकर पोते - पोती , नाती - नतनी नचाएंगे ........देखो अस्सी साल जीकर मरा है ...तुम्हरा नाना , तुम्हरा दद्दा | थू - थू  है ..........ऐसी जिनगी और ऐसी मौत पर ..........." 


मिता दास के बारे में -
   जन्म -------१२ जुलाई सन १९६१ 
   स्थान -------जबलपुर [.प्र]
   सम्प्रति ------स्वतंत्र लेखन 
   विधा --------कविता ,कहानी ,आलेख ,स्तंभकार ,रेखांकन ,अनुवाद,
साक्षात्कार लेना ​ , संपादन करना आदि |
   संग्रह -------- अंतरमम [काव्य -संग्रह ] बांग्ला भाषा में [ सन ----२००३ में ]
   संकलित ------ कहानी [हरेली ] कथा संग्रह में ,
                         कवितायेँ [हम बीस सदी के ] काव्य संग्रह में ,
                        कवितायेँ [नवा अंजोर के नवा किरण ] काव्य & कथा संग्रह में ,
                        सारा भारत काव्य संग्रह में ------ कविता संग्रहित [बांग्ला भाषा ],
                        साहित्य सेतु काव्य संग्रह में ------ कविता संग्रहित [बांग्ला भाषा में ]
  सम्पादित ------- संग्रह ---- हम बीस सदी के [हिंदी काव्य संकलन के संपादन मंडल में ]
                           पत्रिका ---- धरातल के स्वर ...... पाक्षिक [हिंदी ]
                                            मुक्त कंठ .......... मासिक पत्रिका [हिंदी ]
                                           छत्तीसगढ़ आसपास ....... मासिक पत्रिका [हिंदी ]
                                             सेतु .............. मासिक पत्रिका [हिंदी विभाग ] बांग्ला पत्रिका 
पुरष्कार ------------ हिंदी कहानी प्रतियोगिता में ......कहानी ------''पहलू यह भी '' पुरस्कृत 
सम्मान --------------[] हिंदी सेवी सम्मान  ''कवि रोबिन सुर ''......... उत्तर बंग नाट्य जगत सिलिगुरी[ नोर्थ बंगाल ] सन २००३ में 
                              [] ''हिन्दी विद्या रत्न भारती सम्मान '' कादंबरी साहित्य परिषद्                                                     चिरिमिरी हिल्स  कुरासिया कोरिया [ . .]  
                              []  '' डा . खूबचंद बघेल सम्मान ''   २००५ में 
                              [] प्रसश्ती पत्र  '' हिंदी साहित्य हेतु '' २००५ में 
                              [] '' राष्ट्रभाषा अलंकरण '' २००८ में                                      

प्रसारण ------------- दूरदर्शन ------[ भोपाल से ]  स्वरचित गीतों और नज्मो का प्रसारण 
                              १९९९ में , गायिका ------- तपोशी नागराज ,   
                                             संगीत --------- मुरलीधर नागराज
                              दूरदर्शन ------- रायपुर से स्वरचित कविताओं का पाठ 
                              आकाशवाणी ------- रायपुर से विगत पंद्रह [१५ ] वर्षों से  लगातार 
                                                            स्वरचित कविताओं का पाठ |

                                          पता ----- ६३/ नेहरूनगर पश्चिम , भिलाई , छत्तीस
                                                      गढ़ ...पिन ---- ४९०००२० 
                                          फोन नंबर --- 08871649748 , 09329509050