रेणु मिश्रा की कविताओं में प्रेम के उजले पक्ष हैं. प्रेम के प्रति प्रतिबद्धताएँ जैसे ज़िंदगी को एक उम्मीद  से भर देती हैं, कुछ वैसे ही इनकी प्रेम कविताएँ इनकी  सतत रचनात्मकता को एक उम्मीद से भर रही हैं. जनराह इन्हें अनंत शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत कर रहा हैं. आशा है आप अपनी राय से अवगत कराएँगे. 
1. तुम्हारे कमरे का मेरा
सामान 
आज
तुम्हारे कमरे मे गयी थी 
चुपके
से,
ठहरे
पानी सी
और
हवा की तरह ले आई 
अपने
संग हर वो बात 
जो
ज़िंदगी के लिए ज़रूरी थी 
हाँ
ले आई बिस्तर के सिरहाने से 
कॉफी के,
दो खाली मग 
कड़वाहटों को तलहटी मे छोड़ 
जिनके संग गुज़ारा था 
प्यार भरी चुसकियों का मीठा वक़्त
अरे!! वक़्त से याद आया 
ले आई फ़ोटोफ्रेम से 
मुस्की वाला, वक़्त का क़तरा
जो लम्हों की सूई से ठोकर खा  
वहीं था पड़ा, पतझड़ सा बिखरा 
यादों के चिलमन से जो 
धूप थी छन के आई 
तो उससे लग रहा था 
वो कितना उजला निखरा 
लो!! उजले से याद आया
ले आई उजले से दिन और 
चमकीली रातों वाला कलेण्डर 
जिनमे बातें थी उन मौसमों की 
जहाँ दिन खिलते थे चंपई से 
और रातें महकती थी जैसे लैवेंडर।
अब!! ख़ुशबू की बात कैसे भूलूँ 
ले आई तुम्हारी अलमारी से 
झाँकता हुआ अपना हरा दुपट्टा
जो तुम्हारी ख़ुशबू से था तरा
और तुम्हारे प्यार को सीने से लगाए 
बरसों से था वहीं पड़ा  
गुस्ताख़ी माफ़ हो,
तुम्हें
बताया नहीं 
कि मैं कब आई मैं कब गयी 
पर
शायद तुमने मेरे लिए ही इन्हे 
इतने
दिनों से सहेज रखा था 
ले आई 
तुम्हारे कमरे का वो मेरा सामान 
जो मेरी ज़िंदगी के लिए ज़रूरी था...!
2.
इतने जुदा हैं क्यों 
कैसा होता है ना
हम कितने अलग
कितने जुदा होते हैं 
हमारा एक दूसरे से  
कुछ भी तो नही मिलता 
ना शक्ल ना सूरत 
ना हसरत ना फितरत 
ना बात करने का तरीका 
ना ज़िंदगी जीने का सलीका 
हम होते हैं बिलकुल 
अलग अलग दुनिया के मालिक
जुदा नगर के बाशिंदे 
मगर फिर भी 
ये शब हो या सहर  
या फिर हो दोपहर का पहर 
सब की ज़िंदगी के पहलू 
लगभग एक जैसे ही होते हैं
बंद आँखों मे तैरते सपने हों 
या खुली पलकों की तन्हाइयाँ 
तेज़ धडकनों की बेचैनियाँ हों 
या जिस्म की मद्धम रवानियाँ 
कहाँ फ़र्क होता है, इन्हे महसूसने मे 
जो सरसराहट तुम मे तैर जाती है
मुझे पल भर को सोचने मे  
बिलकुल वैसी ही बिजली 
कौंध जाती है मुझमे 
तुम्हारे नाज़ुक खयाल को समेटने
मे 
फिर भी हम एक दूसरे से 
हम-खयाल नहीं होते 
बने रहना चाहते हैं 
अलग अलग मुल्क के हुक्मरान 
अपनी अपनी सरहदों के साथ 
अपने ज़र्रे-आकाश को समेटे 
अपनी सादगी छोड़ अपने अना के साथ
!
3. क्यूँ
याद आते हैं 
कभी कभी कुछ लोग,
जाने क्यूँ ऐसे याद आते हैं
जैसे साँसों का बिना बताए 
लेना और छोड़ना
या 
यादों की चहल-कदमी मे   
गिरना और संभलना
जैसे किन्ही प्यारी बातों का 
बनना और बिगड़ना 
या  
किसी पुराने ज़ख्म का
फिर से हरा होना और दुखना
जैसे किताबों की रैक का 
कोई छूटा हुआ सा कोना
या 
उससे नीचे गिरी किताब का 
एक मुड़ा हुआ सा पन्ना
जैसे आसमा की थाली से   
कोई टूटा तारा चुनना 
या  
उम्मीद के दामन से गिर
के  
मांगी हुई दुआ का खोना !
4. खामोशी.
एक ख़ामोशी तेरे मेरे
बीच कायम है
शायद
इक लम्हे से
इक मौसम से
या यूं कहें
इक अरसे से
काश !
नज़रें मिलें
पलकें भीगें
या यूं कहें
बिन कहे-सुने...
शिकवे धुल जाएँ'!!
शायद
इक लम्हे से
इक मौसम से
या यूं कहें
इक अरसे से
काश !
नज़रें मिलें
पलकें भीगें
या यूं कहें
बिन कहे-सुने...
शिकवे धुल जाएँ'!!
5. मुस्कान की वजह
तुम्हारे जाने के बाद 
खाली मर्तबान से पड़े दिन में
उदासी भर आई थी
सोचती हूँ
ज्यादा दिन ऐसे रहे तो
उनमे नमी जम जायेगी
फिर कुछ और दिन
वो ऐसे पड़े रहे तो
उनमे तुम्हारे प्यार के
छोटे छोटे फंगस उग आयेंगे
फिर वही फंगस
कीट-पतंगों, झींगुरों में बदल
तुम्हारी यादों के जंगल में जा
कभी झांय झांय शोर मचायेंगे
तो कभी टिमटिमाते जुगनू बन
मेरी इंतज़ार भरी रात को
जगमग कर जायेंगे
तुम सोचते थे
तुम्हारे जाने के बाद
मैं अकेली रह जाऊँगी
लो देख लो
तुम्हारा, मुझे छोड़ के जाना
बेवजह रह गया
और खाली मर्तबान वाला उदास दिन
मेरे मुस्कराहट की वजह बन गया !!
खाली मर्तबान से पड़े दिन में
उदासी भर आई थी
सोचती हूँ
ज्यादा दिन ऐसे रहे तो
उनमे नमी जम जायेगी
फिर कुछ और दिन
वो ऐसे पड़े रहे तो
उनमे तुम्हारे प्यार के
छोटे छोटे फंगस उग आयेंगे
फिर वही फंगस
कीट-पतंगों, झींगुरों में बदल
तुम्हारी यादों के जंगल में जा
कभी झांय झांय शोर मचायेंगे
तो कभी टिमटिमाते जुगनू बन
मेरी इंतज़ार भरी रात को
जगमग कर जायेंगे
तुम सोचते थे
तुम्हारे जाने के बाद
मैं अकेली रह जाऊँगी
लो देख लो
तुम्हारा, मुझे छोड़ के जाना
बेवजह रह गया
और खाली मर्तबान वाला उदास दिन
मेरे मुस्कराहट की वजह बन गया !!
6. खयाल तुम्हारा
समंदर के लहरों सा
तुम्हारा ख़याल 
कैसे रोकूँ उन्हे 
मन के साहिल पर आने से।  
पर क्या जानते हो?
पलकों की डिबिया मे 
जो छुपा रखे हैं  
प्यार के मोती 
वो कितने खर्च हो जाते हैं 
बस तुम्हारे याद आने से। 
इसके पहले कि 
दिन-रात के कारोबार 
खतम कर 
मैं रीता हो जाऊँ 
तुम छोड़ के ये दुनियादारी 
आ जाओ किसी बहाने से
 परिचय : 
** मई 2010
में “लम्हों के मुसाफ़िर” (www.renu-mishra.blogspot.in) के
नाम से शुरू किया गया ब्लाग काफी चर्चित है।
 ** 2011 से अब तक “स्वर कम्युनिकेशन्स प्रा.लिमिटेड” के साथ क्वालिटी कंट्रोलर (हिन्दी भाषा) के तौर पर जुड़ाव
** देश-विदेश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं व विविध विषयों पर आलेखों का नियमित प्रकाशन
** दिसंबर 2013 मे “विरहगीतिका” नामक साझा काव्य संग्रह प्रकाशित
** जानी मानी महिलाओं की पत्रिका ‘बिंदिया’ मे कविताओं का प्रकाशन
** जुलाई 2014 मे “धूप के रंग” नाम से नया साझा काव्य संग्रह प्रकाशित
संप्रति:- स्वतंत्र पत्रकारिता एवं लेखन कार्य
मोबाइल नं :- +919598604369

