17.
सुनील और आनंद रिंकू के कमरे पर काफ़ी पहले
पहुंच गये थे और राजू थोड़ी देर बाद पहुंचा था। बीच का अंतराल अच्छा खासा लम्बा था
लेकिन रिंकू अब तक तैयार नहीं हो पाया था। राजू ने पहुंचते ही गुहार लगायी कि
जल्दी निकला जाय लेकिन रिंकू अपनी शर्ट को लेकर थोड़ा संशय में था।
´´यह वाली सही है कि पहिलकी वाली ही ठीक
थी....देखना।´´
उसने गोल घूम कर दिखाया। सुनील और आनंद
दोनों ने रज़ामंदी दे दी कि यही ठीक है और अब जल्दी निकलना चाहिये।
´´सही लग रहा है.´´ उसने राजू से पूछा।
´´पहले कौन वाली शर्ट पहने थे ?´´ राजू ने पूछा।
आनंद और सुनील इस सवाल पर यह सोच कर झल्ला गये
कि अब फिर से रिंकू राजू को पुरानी वाली शर्ट पहन कर दिखायेगा और समय बर्बाद
करेगा।
´´भाग्साले....फिर नरक करोगे ? अबे
सही है ये शर्ट। चलो...।´´ आनंद
ने शोर मचाया तो रिंकू गंभीर हो गया।
´´तुम लोगों को समझ में नहीं आ रहा है ? हम
बहुत टेंशन में हैं यार। कायदे से यही तो पहली मुलाक़ात होगी...।´´ रिंकू ने भावुक आवाज़ में कहा तो वहां
मौजूद लोग और लोग भी थोड़े भावुक हो गये।
´´इस पैण्ट पर हल्के कलर की शर्ट ज़्यादा
मस्त लगेगी।´´
राजू ने राय दी तो रिंकू सोच में पड़
गया।
´´यार हल्के रंग की है तो मगर साफ नहीं
है।´´
अचानक आनंद और सुनील दोनों की नज़र एक साथ राजू
की शर्ट की तरफ़ गयी।
´´ये बहुत मस्त लगेगा तुम्हारे पैण्ट
पर....।´´ राजू ने थोड़ी देर रिंकू की पैण्ट की ओर
देखा और अपनी शर्ट की तरफ। ´´मस्त
कॉंबिनेशन रहेगा।´´ वह
अपनी शर्ट उतारने लगा तो रिंकू ने अपनी शर्ट उतार दी। दोनों ने एक दूसरे की शर्ट
पहनी और नया-नया महसूस किया।
´´क्या प्लानिंग है वैसे ?´´ राजू
जो कि थोड़ा देर से पहुंचा था पूरा प्लान जानना चाहता क्योंकि उसी से उसका भी प्लान
जुड़ा था।
´´उसकी मां घर जाएगी आधे घण्टे बाद खाना
बनाने....।´´ रिंकू ने प्लान बताना शुरू किया तो
उसके चेहरे पर व्योमकेश बख्शी वाली चपलता उतर आयी। सब ध्यान से सुन रहे थे क्योंकि
प्लान में सबकी अपनी-अपनी भूमिका थी। ´´हम मान लेते हैं कि समय की कमी की वजह से वह सबसे आसान खाना यानि
खिचड़ी भी बनायेगी तो बनाने और सुक्ला को खिलाने में कुल मिलाकर एक घण्टा तो लगेगा
ही। हम इस समय को कम करके सिर्फ़ पैंतालिस मिनट मानते हैं तो हमारे पास अपने काम
में कामयाब होने के लिये पंद्रह मिनट हैं ताकि हमारे पास अपने-अपने समान के साथ
बतियाने के लिये कम से कम आधा घण्टा आराम से रहे। अब प्लानिंग को एक बार और दोहरा
लेते हैं। सुनील.....।´´ पूरी
प्लानिंग की रिहर्सल करने में पांच मिनट और लगे और इसके बाद चारों दोस्त जब सज
संवर कर कमरे से बाहर निकले तो देख कर लग रहा था कि रिंकू की शादी है और बाकी
तीनों बाराती हैं।
´´ट्यूबलाइट का भाई कहां है ?´´ सुनील
ने पूछा।
´´वह वहीं पर मिलेगा।´´ रिंकू ने आश्वस्त किया।
रिंकू ने कमरे का ताला बंद किया और
चाभी जेब के हवाले करते हुये बोला।
´´कोई सिगरेट नहीं पीयेगा कि मुंह न
महके...। लड़कियों को सिगरेट की महक पसंद नहीं होती।´´ रिंकू ने बड़े बुज़ुर्ग की तरह फ़रमान
सुनाया। सबने सहमति में सिर हिलाया।
´´क्या बता रहे थे तुम बे कि चतुर्वेदिया
पिटा रहा था ?´´ आनंद ने उत्सुकता ज़ाहिर की।
´´हमको तो कल यही बताया कि चतुर्वेदिया
अब लड़कों को छोड़कर लड़कियों में इंट्रेस्ट लेने लगा है।´´ रिंकू ने राजू की ओर इशारा किया।
´´तुम साले दिये नहीं उसको.....कितना
पीछे पड़ा था तुम्हारे....।´´ सुनील
ने चुटकी ली।
सब हंसने लगे।
´´सुने हैं कोई नयी पेंटिंग बना रहा
है....।´´ रिंकू ने माउथ फ्रेशनर मुंह में डालते
हुये कहा।
´´किसके लिये ? सोनिया गांधी के लिये ?´´ राजू
ने पूछा।
´´ नहीं बे इस बार प्रियंका गांधी के
लिये।´´
ग्रुप में एक बार फिर हंसी का फुहारा छूटा।
18.
शेरसिंह जब चिंतित मुद्रा में क्रांति की बातों
पर विचार करते घर पहुंचे तो उनके विचारों की श्रृंखला फिर एक आघात से टूटी। शुक्ला
जी ने उन्हें गेट पर से ही भगाते हुये आदेश दिया कि वह शुक्लाइन को लेकर आयें
क्योंकि शुक्लाजी को बहुत तेज़ भूख लगी है। उन्हें कॉलोनी कुत्ता संघ के
पदाधिकारियों और सदस्यों की बात सही महसूस होने लगी। वह वापस थके कदमों से जागरण
स्थल की ओर लौट पड़े कि मालकिन को बुला लाया जाय। शुकलाइन ने शेरसिंह की सिर्फ़ एक भूंक पर ही मामला समझ लिया और उठने का उपक्रम करने लगीं।
´´कहां....?´´ दरोगाइन
ने पूछा जब उन्होंने देखा शुक्लाइन अपने दोनों घुटनों पर ज़ोर देकर उठने की कोशिश
कर रही हैं।
´´आव....तानी पंडीजी के खाना खिया के।´´ वह खड़ी हो गयीं।
´´अरे भाई साहब को भी ले आइये।´´ दरोगाइन ने कहा। पूरे कॉलोनी के मर्द उनके
भाई साहब थे और वह सबकी भाभी होने के नाते किसी से भी कभी कोई भी भद्दा मज़ाक कर
सकतीं थीं जिसका इंतज़ार सारे भाई साहब बड़ी बेसब्री से करते थे।
शुक्लाइन उठीं और शेरसिंह के पीछे-पीछे
चल दीं। शेरसिंह ने वहां मौजूद कुत्तों की तरफ़ एक नज़र देखा जो व्यंग्य भरे भाव से
उन्हीं की ओर देख रहे थे। उन्होंने नज़रें घुमा लीं। शुक्लाइन के मन में एक बार
आया कि दरोगाइन को कह जांय कि वह दोनों लड़कियों पर नज़र रखें पर अगले ही पल उन्हें
अपनी बेवकूफ़ी का एहसास हुआ कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो दरोगाइन तिल का ताड़ बना कर
पता नहीं कॉलोनी में क्या खबर फैला दी। उन्होंने चालाकी दिखायी और घर पहुंच कर
उन्होंने शेरसिंह को वापस मंदिर जाकर लड़कियों पर नज़र रखने की हिदायत दे दी।
शेरसिंह इस आदेश से बहुत खुश हुये और कुलांचें, जो कि कुत्तों के भाषण से खाली हो चुकी
थीं, भरते हुये मंदिर की ओर चल पड़े।
शेरसिंह जैसे ही मंदिर के लिये मोड़ पर
मुड़े, उनकी नज़र एक कुतिया पर पड़ी जो बीच
रास्ते में आराम फरमा रही थी और स्कूटर मोटरसायकिल वालों को हार्न बजाने के बावजूद
अपनी गाड़ियां बगल से मोड़ कर ले जानी पड़ रही थीं। कुतिया हॉर्न की आवाज़ों पर कोई
तवज़्ज़ो नहीं दे रही थी कि और शेरसिंह उसकी इस दबंगई और बेफि़क्री से बहुत
प्रभावित हुये। उन्हें लगा कि उन्हें अपनी समस्या के बारे में उससे कुछ राय करनी
चाहिये और वह मंदिर न जाकर उसकी ओर बढ़ गये।
मंदिर में कीर्तन अपने शबाब पर था जब
ट्यूबलाइट का भाई जाकर सविता और अनु के बगल में बैठ गया और आंखें मूंद कर कीर्तन
में हिस्सा लेने लगा। उसने थोड़ी देर बाद आंखें खोलीं और अपने आसपास देखा। जब सभी
औरतें कीर्तन में व्यस्त थीं तो उसने सविता के कंधे पर धीरे से छुआ। सविता थोड़ा
झुक गयी और उसकी बातें सुनने लगी। उसकी बातें सुनकर सविता के चेहरे के आत्मविश्वास
और ख़ुशी में कई गुने का इज़ाफ़ा हुआ। जब वह वहां से चला गया तो सविता ने पांच मिनट
बीतने की इंतज़ार किया और पूर्ववत् कीर्तन करती रही। ठीक पांच मिनट बाद, जब `मुझे दिल ना देगी जब तक पीछा करुंगा तब
तक´ की तर्ज पर `मुझे वर ना देगी जब तक भक्ति करुंगा तब
तक´ भजन पर औरतों के झूमने की गति थोड़ी
धीमी हो गयी थी और वे सावधान से विश्राम मुद्रा में आ चुकी थीं, सविता के मोबाइल पर एक फोन आया। उसने
मोबाइल हथेली में लिया तो दरोगाइन और श्रीवास्तवाइन ने झांक कर कॉलर का नाम देखने
की कोशिश की लेकिन तब तक सविता लपक कर फोन रिसीव कर चुकी थी।
´´हैलो, हां प्रतिमा....बोलो।´´
´´हैलो....हैलो तुम्हारी आवाज नहीं आ रही
है।´´
´´हैलो.....अरे हम जागरण में हैं इसलिये
हल्ला हो रहा है।.....आंय....क्या.....घर पे ? अच्छा
अच्छा...हां हां...। ठीक है....आते हैं हां हां अच्छा तैयार होवो हम आ रहे हैं।´´
फोन काटने के बाद सविता ने वहां मौजूद
आंटियों से, जो एक तरह से उसकी मां की अघोषित मुखबिर
थीं, कहा कि वह प्रतिमा को लेने के लिये
उसके घर जाना चाहती है। प्रतिमा पैरों से थोड़ी लाचार थी और उसे कहीं बाहर निकलने
के लिये एक हल्के से सहारे की ज़रूरत पड़ती थी। आंटियों ने सविता को उसके इस
प्रस्ताव पर उसे साधुवाद दिया और ध्वनिमत से इसे पारित कर दिया। हालांकि एक मिनट
को दरोगाइन के मन में आया कि जब प्रतिमा की मां गांव गयी है और उसके घर में कोई
नहीं है तो उसका जागरण में आना इतना ज़रूरी क्यों है। लेकिन अपने इस विचार को वह
ये सोच कर दबा गयीं कि कहीं सचमुच ही वह देवी के दर्शन करना चहती हो तो उसके विशय
में गलत सोचने पर उन्हें पाप पड़ेगा।
सविता जैसे ही कॉलोनी के मोड़ पर मुड़ी, उसे सामने से आता रिंकू दिखायी दिया
जिसके होंठो पर मुस्कान थी। सविता ने फुर्ती से अपने आगे-पीछे अगल-बगल एक नज़र में
देख लिया और निश्चिन्त हो गयी। उसका मन हो रहा था कि वह दौड़ कर रिंकू की बांहों
में समा जाये मगर वह अपने आपको संयत किये रिंकू के पीछे-पीछे चल पड़ी। रिंकू कॉलोनी
के अगले मोड़ से उस जंगल की ओर मुड़ गया जिसके किनारे से पांच नम्बर फाटक नज़र आता
था।
सविता के बताये अनुसार अनु थोड़ी देर
बाद उठी और एक ओर चल पड़ी। उसकी पहरेदारी में दरोगाइन समेत कोई महिला उत्सुक नहीं
थी तो इसके पीछे कई कारण थे। एक तो वह बहुत दबंग लड़की थी जो किसी को कभी भी कुछ भी
कड़वा बोल देने के लिये कुख्यात थी, दूसरे
कॉलोनी में उसकी छवि अपने पीछे घूम रहे लड़कों को बुरी तरह बेइज़्ज़त करने वाली
लड़की की थी जिसके मन में लड़के नाम की प्रजाति के लिये मुहब्बत तो दूर, ज़रा भी सुहानुभूति तक नहीं थी। अनु ने
जागरण स्थल के पीछे जाने पर पाया कि राजू जींस की दोनों जेबों में हाथ डाले
बेसब्री से टहल रहा है और उसका इंतज़ार कर रहा है। वह वैसे तो लड़कों को अपने
आस-पास फटकने भी नहीं देती थी लेकिन राजू उसे बहुत अच्छा लगा था, दूसरे दीदी का व्यवहार उसे प्रेम करने
को प्रेरित कर रहा था। दीदी जब से सामने की बालकनी वाले लड़के के प्रेम में पड़ी थी, सबसे हंस कर बात करती थी और मां की
कड़वी से कड़वी बात पर न विचलित होती थी न उसका जवाब देती थी। उसे लग गया था कि
प्रेम ज़रूर कोई जादुई चीज़ है और वह भी इसका स्वाद ज़रूर चखेगी। यह राजू की
किस्मत ही थी कि ऐसे विचारों के बीच उसने ही सबसे ज़्यादा कोशिश की और अपनी सफलता
के बाद से आजकल वह `कोशिश
करने वालों की हार नहीं होती, लहरों
से डर कर नौका पार नहीं होती´ कविता
ग्रुप में हर परिस्थिति में सुनाता रहता था।
अनु जैसे ही राजू की ओर बढ़ी राजू क्वार्टर्स के
पीछे वाले हिस्से की ओर चल पड़ा जहां अमूमन दिन में भी सन्नाटा होता था।
सुनील अपनी योजना के मुताबिक जागरण के
पंडाल के पीछे टहलता हुआ सिगरेट पीने लगा और किसी भी तरह के संभावित खतरे की टोह
लेने लगा। थोड़ी दूरी पर उसे शुक्ला के घर का पालतू कुत्ता भी दिखायी दिया जो एक
कुतिया के आगे-पीछे टहल रहा था। सुनील को न जाने क्यों लगा कि उसके दोनों दोस्त जो
लौण्डियों के पीछे गये हैं, कुत्ते
जैसे ही हैं। वह उनसे अधिक ज़िम्मेदारी का काम कर रहा है और इस तरह उन दोनों
कुत्तों से बेहतर है जो खुद को ´दिलवाले
दुल्हनियां...´
का शाहरुख़ और ´प्यार किया तो डरना...´ का सलमान समझ रहे हैं। ऐसा सोचने से
उसका बिना गर्लफ्रेण्ड होने का, जिसे
ग्रुप में रंड़वा होना कहा जाने लगा था, दुख काफी हद तक कम हुआ और वह अपने आप को डॉन का अमिताभ बच्चन समझता
हुआ लम्बे कश लेने लगा मानो रोमांटिक बातें उसे बहुत बोर करती हों।
19.
सविता हर लिहाज़ से रिंकू से अधिक पढ़ी-लिखी ही
नहीं, उससे अधिक समझदार (जिसे अंग्रेज़ी में
मैच्योर कहा जाता था और जिसके लिये हिंदी में कोई सटीक शब्द नहीं था) भी थी और इस
बात को रिंकू के ग्रुप में सब मानते थे। रिंकू के मन में भी थोड़ा संशय इस बात को
लेकर ज़रूर था कि यह लड़की उससे उम्र में भी बड़ी और पढ़ाई (अगर सूत्रों की मानें) में
भी अधिक है, कहीं उसने रिंकू को हल्के में ले लिया
तो इस डर के मद्देनज़र रिंकू ने पैण्ट की जेब में विल्स नेवी कट की एक पैकेट रख ली
थी जिसमें चार-पांच सिगरेटें शेष थीं। अगर सविता ने अपने बड़े या समझदार होने का
कुछ रोब दिखाया तो फिर रिंकू को फॉर्म में आ जाना था और लम्बे-लम्बे कश लेते हुये
कुछ बड़ी-बड़ी बातें कहनी थीं जिसमें से कुछ उसने पारस के औचक भाषणों से मारी थीं।
दोनों जंगल में कुछ दूर चले और एक पेड़ के नीचे
पहुंच कर रिंकू रुक गया। स्ट्रीट लाइट की रोशनी दोनों को एक दूसरे का चेहरा देखने
के लिये पर्याप्त थी। रिंकू गंभीर मुद्रा में चलता हुआ दो कदम आगे बढ़ा और पलट कर
दोनों बांहें फैला दीं। यह स्टाइल भारतीय युवाओं को शाहरुख खान की देन थी जिसके
एवज़ में हर युवा उसका शुक्रगुज़ार था। देश का युवा शाहरुख खान बनना चाहता था और
शाहरुख खान युवा बनना चाहता था। दोनों इसके लिये विभिन्न प्रकार की हरकतें करते
रहते थे। जिस फि़ल्म में रिंकू ने यह दृश्य देखा था उसके हिसाब से अब सविता को
स्लो मोशन में दौड़ते हुये आना था और रिंकू की बांहों में लिपट जाना था।
´´क्या....?´´ रिंकू
ने जब बांहें फैलाये हुये दोनों पंजों को कई बार हिलाया तो सविता ने पूछा।
रिंकू का मूड थोड़ा खराब हुआ लेकिन उसने अपने आप
को तुरंत संयत कर लिया। सविता की इस अदा को उसने इस बात से जोड़ा कि वह बहुत सीधी
बच्ची है और फि़ल्में कतई नहीं देखती है। इस तरह के विचार हालांकि राजू के लिये
सुरक्षित रखे जाते थे लेकिन अंतत: सारे दोस्त एक ही थैली के चट्टे-बट्टे थे।
´´क्या क्या.....मेरी बांहें तुमको
लपेटने के लिये तड़प रही हैं।´´ रिंकू
ने यथासंभव सरल शब्दों में कहने की कोशिश की लेकिन बात थी कि फि़ल्मी हुयी जाती
थी।
´´हम कहे हैं क्या कि तुम्हारी बांहों
में आएंगे ?´´ सविता के इस सवाल पर रिंकू का जुटाया
गया आत्मविश्वास धीरे-धीरे दरकने लगा।
´´नहीं कही तो नहीं हो
मगर.....हम...तुमसे.....।´´ रिंकू
को लगा अब तक इस लड़की को लेकर सोचता आ रहा है और फोन पर दोनों के बीच जो बातें
हुयी हैं वह उसकी कल्पना की उड़ाने हैं। यह वह लड़की कतई नहीं है और अब यह उसकी बद्तमीज़ी
पर उसे कायदे से सबक सिखाने वाली है। उसने अपनी बांहे बटोरनी शुरू कर दीं लेकिन
उसे लगा कि उसकी हज़ार बांहें हो गयी हैं और बटोरने में बहुत वक़्त लग रहा है।
सविता मुस्कराती हुयी आई और उसकी आधी बटोरी बांहों को खोल कर उसमें एक छोटे बच्चे
की तरह घुस गयी। ``एकदम
बेकूफे हो क्या ?´´ उसका बेवकूफ़ कहना रिंकू को इतना प्यारा
लगा जितना उसे अपने अब्बा का ज़हीन कहना भी नहीं लगा होगा (हालांकि ऐसे मौके उसकी
ज़िंदगी में सिर्फ़ दो बार ही आये थे जब अब्बा ने उसकी तारीफ़ की थी)।
दोनों कुछ पल के लिये खामोश रहे। काफ़ी समय रिंकू
ने यह सोचने में लगा दिया कि आखिर ऐसी स्थिति में क्या कहना उसके लिये अच्छा और
आगे बढ़ने में मददगार साबित होगा। एक वक़्फ़े के बाद उसने धीरे से सविता के कानों
में फुसफुसाते हुये पूछा, ``तुम्हारी
उम्र कितनी है ?´´ हालांकि यह सवाल किसी भी लड़की, महिला या बुढ़िया से पूछा जाने वाला
सबसे ख़तरनाक सवाल था और इस सवाल पर बरसों के बने बनाये रिश्ते एक झटके में बिखर
सकते थे लेकिन रिंकू ने यकायक यह खतरा उठा लिया था। सविता उसकी बांहों से अलग हो
गयी और पास की एक कंटीली झाड़ी से एक जंगली फूल नोच कर उसे मसलने लगी।
``क्यों पूछ रहे हो ?´´ उसकी
आवाज़ में एक तनहाई थी जिसे रिंकू ने महसूस तो किया लेकिन उसका मतलब नहीं समझ सका।
उसे सिर्फ़ इतना ही समझ में आया कि उसे यह सवाल, कम से कम, अभी नहीं पूछना चाहिये था। उसने फूल
मसलती सविता के शरीर को पहली बार इतने नज़दीक से इतनी फुरसत से देखा। उसे लगा वह
दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान है। उसने सविता के कंधे पर धीरे से हाथ रखा और उसका
इरादा यह था कि वह अपने हाथों को कंधे से फिसलाता धीरे-धीरे उसे उन्नत वक्षों की
ओर ले जायेगा जो उसे पागल कर रहे थे।
``नहीं बताना तो रहने दो, हमको कोई फ़र्क नहीं पड़ता।´´ उसने सविता का मुंह अपनी ओर कर उसे
सीने से चिपका लिया। सविता के वक्ष उसके सीने पर गड़ रहे थे और उसके शरीर में जो
प्रतिक्रिया हो रही थी उसे लेकर वह इतना सशंकित था कि उसे डर लग रहा था कि सविता
को पता न चल जाये कि उसके भीतर क्या परिवर्तन हो रहे हैं। उसने सविता को खुद से
थोड़ा अलग किया और उसके चेहरे पर चूमने से शुरूआत की। उसे याद आया कि योजना के
मुताबिक उसे पहले उसकी हथेलियां आगे-पीछे चूमनी थीं लेकिन उसे यह जंचा नहीं। योजना
के हिसाब से चलने के लिये सविता को भी योजना के हिसाब से हरकतें करनी थीं जो वह
नहीं कर रही थी। उसने सारी योजनाओं को परे झटका और पहले उसके गाल चूमने के बाद
उसके होंठों पर अपने होंठ ले गया। सविता से मिले सहयोग ने उसकी अपनी त्वरित योजना
के उत्साह को दुगुना कर दिया और उसकी उंगलियां सविता के शरीर पर यहां-वहां नाचने
लगीं।
20.
रिंकू ग्रुप का पहला लड़का था जिसने किसी लड़की
के शरीर को इतने पास से छुआ था और पूरी तरह न सही, उसका आनंद उठाया था। वरना अब तक तो ये
लोग दुर्गापूजा और दशहरे जैसे मेलों में ही किसी लड़की और औरत के शरीर के अंगों को
छू पाते थे। दुर्गापूजा ग्रुप का सबसे पसंदीदा त्योहार इसीलिये हुआ करता था कि उस
समय सभी को हथुआ मार्केट, मछोदरी, चेतगंज और नाटी ईमली जैसे भीड़-भाड़ वाले
इलाकों में दुर्गा
जी के पंडालों को देखने उमड़ी भीड़ में
ढेर सारी सजी संवरी लड़कियां देखने और छूने के लिये मिल जाती थीं। ये वे लड़कियां
होती थीं जिन्हें उनके मां-बाप बहुत अनुशासन में रखते थे और किसी सहेली के घर जाने
के लिये भी इन्हें पचास बार पूछना पड़ता था। ऐसे त्योहार इन लड़कियों के लिये सजने, घर से बाहर निकलने, अपनी सहेलियों से मिलने, सहेलियों के बीच किसी सीधे लड़के की
चर्चा करने और नये फैशन के कपड़े खरीदने की योजना बनाने की सुविधा प्रदान करते थे, इसलिये लड़कियों के भी चहेते थे। लड़के
लड़कियों दोनों के चहेते होने के कारण इन त्योहारों में ख़ूब भीड़ हुआ करती थी।
ज़्यादातर लड़कियां वाकई ऐसे लड़कों से बहुत डरती थीं जो भीड़ में उनके अंगों को
दबाने और मसलने का मौका खोजा करते थे। कुछ लड़कियां बहुत दबंग थीं और लड़के के घूरने
पर भी हंगामा मचा कर पूरी भीड़ को अपने पक्ष में कर लेती थीं। माता के दर्शन के
लिये घुस रही भीड़ में हर आधे घंटे बाद हंगामा होता था और कोई एक लड़की रोती हुयी
बताती थी कि उसके साथ फलां लड़के ने बद्तमीज़ी की है। बद्तमीज़ी करने वाला लड़का भी
भीड़ में से इस तमाशे को देख रहा होता था और दोस्तों को यह बताने में लगा रहता था
कि उसके स्तन कितने नरम थे। लड़के की पहचान करने में लड़की की घबराहट व लापरवाही का
शिकार हुआ दूसरा लड़का डरा सहमा सा भीड़ को देखता रहता था और हर दूसरे सेकेण्ड कहता
था, ``हम कुछ नहीं किये...दुर्गा मां की कसम हम कुछ नहीं किये...।´´ थोड़ी देर बाद, जब भीड़ में से कोई उत्साही नौजवान उसे
एकाथ थप्पड़ मार चुका होता तो वह लड़की को दीदी कहता उसके पैरों पर गिर जाता। रिंकू
और उसका ग्रुप ऐसी घटनाओं को दूर से देख रहा होता क्योंकि उनमें सुनील के अलावा
कोई हाथ लगाने के पक्ष में नहीं होता था। बाकी सबका मानना था कि ख़ूबसूरत लड़कियों
को इतनी संख्या में देखना ही बहुत है और ये सब काम ठीक नहीं हैं। सुनील का कहना था
कि फूल और लड़कियां सूंघने और छूने के लिये होते हैं न कि देखने के लिये। उसे पता
नहीं था कि उसका यह संवाद भी किसी पुरानी घटिया फिल्म से प्रभावित था।
ऐसे में रिंकू का किसी लड़की के शरीर को इतने
करीब से छू लेना एक बड़ी उपलब्धि थी, न
सिर्फ़ रिंकू के लिये बल्कि पूरे ग्रुप के लिये। रिंकू ने इस घटना के बाद तीन-चार
दिनों तक स्नान नहीं किया और उसकी वह शर्ट जो उसने राजू से उधार ली थी उसे हमेशा
के लिये अपने पास रख लिया। राजू की ख़ुशी भी संभाले नहीं संभल रही थी और उसने खुशियों
की मात्रा ज़रूरत से ज़्यादा हो जाने के कारण सभी दोस्तों में बांट दी थी।
``कै बार किस किये....?´´ बातें
कुछ इतनी ताज़ा थीं कि चाहे जितनी बार दोहराओ उनकी ताज़गी जाती ही नहीं थीं। अनुज
गदाई ने अपनी तरफ से नया सवाल पूछा था।
``अबे बता तो चुके हैं कई बार....।
सुनिलवा से पूछ लो।´´ राजू
ने सुनील की ओर देखते हुये कहा तो उसका दिमाग ख़राब हो गया।
``साले हम क्यों बताएं। हम क्या तुम्हारे
पीए हैं ? हम थे भी नहीं वहां....। लौंडियाबाजी
करो तुम लोग और कहानी सुनाएं हम...।´´ वह फिर से एक नयी सिगरेट सुलगाने लगा। जब से रिंकू और राजू की
ज़िंदगियों में लड़कियों का अवागमन हुआ था वह सिगरेट बहुत पीने लगा था। पता नहीं उसे
हमेशा ये क्यों लगता रहता कि उसके दोनों दोस्त गलत रास्ते पर जा रहे हैं और उसे
इन्हें बचाने की कोशिश करनी चाहिये।
``अबे बीसे मिनट तो साथ रह पाये। तीन बार
किस किये।´´ राजू ने शर्माते हुये बताया।
``स्मूच कि गाल पे किस....?´´ अनुज
गदाई आंखें बंद कर मन की आंखों से दृश्य को अनुभव करना चाहता था।
``गाल पे. हम उसके नन्ना हैं क्या बे ? अबे किस किये मतलब होंठ में होंठ
सटाके....गदाई नहीं तो।´´
अनुज गदाई ने आगे की बातें नहीं सुनीं। वह भी
अनु को एक बीच मन लगाकर चाह चुका था और अब उसे दुख और संतोष एक साथ हो रहा था। दुख
इसलिये कि शायद उसे उसके पीछे कुछ दिन और लगे रहना चाहिये था और संतोष इसलिये कि
चलो कम से कम ग्रुप में ही तो आयी, अब
उसके बारे में कुछ न कुछ सुनने को मिलता रहेगा। कॉलोनी का हर लड़का कॉलोनी की हर
लड़की को कभी न कभी चाह चुका होता था और इसलिये किसी भी लड़की की शादी होती थी तो
कॉलोनी के सभी जवान लड़कों को सांप सूंघ जाता था और क्रिकेट के मैदान में तीन-चार
दिनों तक मरघट जैसा सन्नाटा छाया रहता था। कॉलोनी की एक लड़की शादी करके अपनी
ससुराल जाती थी और किसी न किसी घर में एक मुख्य दिल और कई घरों में कई सहायक दिल
टूटा करते थे। मुख्य दिल का अर्थ था वह लड़का जिसने अपने तीन-चार साल उस लड़की के
पीछे बर्बाद किये होते थे और सहायक का अर्थ था कि वे लड़के जो अपना काम जारी रखते
हुये बिना अपनी दिनचर्या को नुकसान पहुंचाये बिना लड़कियों को नाना प्रकार के
ज़रियों से अपनी भावनाओं से अवगत कराते रहते थे। कुल मिलाकर किसी भी लड़की की शादी
में उसके मां-बाप समेत सभी रिश्तेदारों की खुशियों का योग कर दें तो भी पूरी
कॉलोनी के नौनिहालों को समग्र रूप से जो दुख होता था वह भारी पड़ता था और इस दुख के
कारण कॉलोनी की फिज़ा कई दिनों तक ग़मगीन रहती थी।