Wednesday, April 10, 2013

ब्रजेश कुमार पाण्डेय की ग़ज़लें.


  

बिहार के बक्सर जिले में जनमें ब्रजेश की पढ़ाई लिखाई वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय और बी.एच.यू से हुई हैं. साहित्य के बहुत अच्छे पाठक है और मेरे शुरूआती साथियों में सबसे पहले इन्होंने ही छपना शुरू किया, लेकिन लिखने की प्रवृति रहने के बाद भी लिखते कम हैं. हलाँकि इधर बीच इसमें तेजी आई है. हम आशा करते है कि यह तेजी अटूट हो. इनकी कविताएँ कथादेश, परिकथा, देशज, जनपथ सहित कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. कविताएँ लीलाधर मंडलोई द्वारा संपादित किताब कविता का समय में भी शामिल. अचला शर्मा और सुधीश पचौरी की किताब "नए जनसंचार माध्यम और हिंदी" में बी.बी.सी के कार्यक्रमों पर समीक्षा प्रकाशित. प्रस्तुत है इनकी चार ग़ज़लें-  


   -एक-

अब तलक हमने किया क्या कुछ नहीं.
फिर भी पत्थर बोलते क्यों कुछ नहीं.

हादसे दर हादसे होते रहे
आपने कह दी अभी ये कुछ नहीं.

भूख भर रोटी नहीं दी आपने
और बोला बोलना है कुछ नहीं.

इस कदर नाराजगी न थी कभी
बोलते हर बात पे है कुछ नहीं.

आज तक है याद वो मंजर मुझे
सुबह थी पर दिख रहा था कुछ नहीं.

बिक रहा बाजार में सबकुछ यहाँ
और क्या मैंने  खरीदा कुछ नहीं.
 
शाम होने तक चला रास्ता मगर
खोलकर मुट्ठी जो देखा कुछ नहीं.

     -दो-

तुम चलो साथ तो कुछ बात बने.
कहने सुनने के कुछ हालात बने.

वो तो आते हैं चले जाते हैं,
कभी रुक जाएँ ऐसी रात बने.

मैं तो पीछे न मुड़ के देख सका,   
जिंदगी के यही हालात बने.

मेरे हिस्से की साँस लेने दे,
कुछ तो ऐसी ये कायनात बने.

हम तो तैयार थे मरने के लिए,
बेरहम क्यों तेरे जज्बात बने.

      -तीन-

वो चला जाये तो कैसा लगे.
फिर नहीं आए तो कैसा लगे.

आपनी ज़िद पर अड़े रहे हम भी,
दिन ये ढल जाये तो कैसा लगे.

आंखे उसने मुंदी हथेली से,
नाम न आए तो कैसा लगे.

जिंदगी मेरी तू दौड़ा मुझको,
और मिल जाये तो कैसा लगे.

बन चुकी उँगलियाँ अब हैं मुट्ठी,
कोई टकराए तो कैसा लगे.

-चार-

तेरे लिए ही हार गया मैं.
तुमने कहा बेकार गया मैं.

पाया खुद को बहुत अकेला,
जब–जब भी बाजार गया मैं.

पगडण्डी पर चला बहुत कम,
सड़कों पर सौ बार गया मैं.

कांटे चुभे पांव में हरदम,
अक्सर इस रफ़्तार गया मैं.

माँ ने जब भी मुझे बुलाया,
बेटा हूँ ना  यार ,गया मैं.

 ******
ब्रजेश से 09770556046 पर संपर्क किया जा सकता है.

  


14 comments:

  1. wah.. brajesh ji badhai.. aur usase pahle sheshnath ji ko jinhone brajesh ke is chhupe pratibha ko hamare samne laya. kaviton ki duniya se aage badte ye kadam sukhad hain... bahut bahut subhkamna

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  2. ब्रजेश भाई की गजलें पहली बार पढ़ रहा हूं। गजलें पढ़कर उम्मीद जगी है - भरोसा है कि उनसे आगे और अच्छी गजलें पढ़ने-सुनने को मिलेंगी। शूब बधाइयां और शुभकामनाएं....।।

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  3. कांटे चुभे पांव में हरदम,
    अक्सर इस रफ़्तार गया मैं.

    माँ ने जब भी मुझे बुलाया,
    बेटा हूँ ना यार ,गया मैं.achhi hain...bharosa dilaati hai...pahali baar padhin maine...aapko khub sari shubhkamnayen...aage ummid hai aap aur likhenge aur padengen bhi....

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  4. bhaiya dil se daad hazir hai kubul kiya jaay... Apne hisse ki sas mujhe lene do super hit hai meri nazar me...

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  5. bahut achhi gazale hain brajeh bahi.....
    इस कदर नाराजगी न थी कभी
    बोलते हर बात पे है कुछ नहीं.
    bahut badhiya.....

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  6. brajesh jee kya khoob gajale likhi hai ....ye hamari khusmati hai ki aapke bahane hume is kadar sunder gajlen padhne ko milengi.....bahut bahut dhanyavad aur shubhkamnayen

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  7. Bhai aap apne is kabiliyat ko chhupa ke ham sabon se rakha ya hamlog Hi anjan bane rahe pata nahin Per aap ki gajlen hain bahut Hi sandar. Pure dil aap ki is yogyata ko salam karta hun

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  8. Aapki gazle'n ummid ki sunhari kiran hai'n.....dhero'n shubhkamnae'n aapke liye.

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  9. शाम होने तक चला रास्ता मगर

    खोलकर मुट्ठी जो देखा कुछ नहीं.

    Bahut Khub...

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  10. पढ कर मन गदगद हो गया भाई।

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  11. बाजार की फितरत ही यही है कि वह साथ नही रहने देता...यहाँ तक अपने अपने आप को भी

    पाया खुद को बहुत अकेला,
    जब–जब भी बाजार गया मैं.

    ..
    अब मामला यह भी है कि साथ हो कर ही इसका मुकाबला हो सकता है.

    बधाई
    अच्छा पढवाने के लिए ब्रजेश और ब्लाग को

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  12. शेषनाथ जी, बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपके सौजन्य से वर्षों बाद ब्रजेश की ये रचनाएँ पढ़ने को मिलीं। ब्रजेश जी के तेवर अभी भी वही हैं, यह देखकर बहुत अच्छा लगा। मन बेचैन हो रहा है यह पढ़कर। काश कि 15-20 साल पीछे हम लौट सकते।

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