Friday, October 26, 2012

विमल चंद्र पाण्डेय का उपन्यास : पांचवीं किश्त


(दो हजार छह में बनारस में हुए बम विस्फोटों के बाद शुरू हुए इस उपन्यास ने विमल के अनुसार उनकी हीलाहवाली की वजह से छह साल का समय ले लिया. लेकिन मेरे हिसाब से छह साल के अंदर इस उपन्यास ने मानवता के लंबे सफर, उसके पतन और उत्कर्ष के जिन पहुलओं को हमसाया किया है उसके लिए यह अवधि एक ठहराव भर नजर आती है. विमल की भाषा वैविध्य और कहानीपन से हम परिचित है. इस उपन्यास में विमल ने जिस बेचैन भाषा के माध्यम से कथ्य की पड़ताल की है वह समाज की अंतर्यात्रा से उपजी भाषा है. शुरू-शुरू में एकदम सहज, व्यंग्यात्मक और हास्ययुक्त भाषा और कुछ किशोरों के जीवन के खिलंदड़े चित्रण के साथ चलता सफ़र बाद में धीरे-धीरे उसी तरह डरावना और स्याह होता जाता है जैसे हमारी ज़िन्दगी. उपन्यास का नाम 'नादिरशाह के जूते' है लेकिन लेखक इसे लेकर बहुत आश्वस्त नहीं है और यह बाद में बदला जा सकता है. हर शुक्रवार यह इस ब्लॉग पर किश्तवार प्रकाशित होता है..प्रस्तुत है पांचवीं  किश्त ...अपनी बेबाक टिप्पणियों से अवगत कराएँ ..-मोडरेटर)




9.

रिंकू ने जब देखा कि सभी दोस्त सिर्फ़ बातों से और नयी-नयी योजनाओं से उसका दिल बहला रहे हैं और उन्हें शायद यह लग रहा है कि औरों की तरह उसका प्यार भी चवन्नी छाप कॉलोनिया प्रेम है तो उसका दिमाग भन्ना गया। उसने तय किया कि वह जो करेगा अकेला करेगा और ऐसा करेगा कि सभी दोस्त देखते रह जाएंगे। उसने सोचा और सिर्फ़ राजू को अपने साथ मिलाया क्योंकि लड़कियों को प्रपोज करने का उसका अच्छा रिकार्ड रहा था। राजू यू. पी. कॉलेज का छात्र था और इस कॉलेज के विषय में यह बात प्रचलित थी कि जिसने यहां लड़की को प्रपोज कर दिया वह दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी लड़की को प्रपोज कर सकता है ठीक उसी तरह जैसे बनारस के सड़क जाम में जो गाड़ी चला लेगा वह कहीं भी चला सकता है। ऐसे कॉलेज में राजू ने लड़कियों को प्रपोज करके सकारात्मक परिणाम पाने में आशातीत सफलता प्राप्त की थी। हालांकि शुरूआत उसकी एक खेदजनक घटना से हुयी थी।
इस कॉलेज का नाम पहले क्षत्रिय कॉलेज था, ऐसा लोग बताते थे। कालान्तर में कॉलेज का नाम बदला पर चरित्र नहीं। यहां चपरासी से लेकर व्याख्याता और क्लर्क से लेकर कूरियर देने वाले तक ठाकुर हुआ करते थे। यहां लड़कियों को लेकर गोली कट्टा हो जाया करता था और जिस लड़की के पीछे यह सब होता था वह मासूमियत भरा चेहरा बनाकर अपनी बगल वाली सहेली से पूछती थी, ´´क्या हुआ किरणमयी, ये झगड़ा किस बात को लेकर हो रहा है बाहर लड़कों में ?´´ किरणमयी उससे भी भोला चेहरा बनाकर जवाब देती, ´´पता नहीं सावित्री, शायद छात्रसंघ चुनाव को लेकर छात्र नेता आपस में मारपीट कर रहे हों। ये लड़कियां सीधे शरतचन्द्र के उपन्यासों से निकल कर बिना कपड़े बदले कॉलेज में आ गयी थीं और अपनी मासूमियत से अक्सर कॉलेज में शरत बाबू के उपन्यासों जैसी दुखद स्थितियां पैदा कर देती थीं। यह दीगर बात है कि इन्हें कभी कुछ पता नहीं चलता था। एक दिन गणित और भौतिकी से कांपने वाला राजू कई दिन के बाद भौतिकी की प्रयोगशाला में घुसा था और उसी दिन उसे पता चला कि दो दिन बाद प्रायोगिकी की कॉपियां चेक की जाएंगीं और जो चेक नहीं करवाएगा उसे परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाएगा। राजू ने अपने नाम के आगे लगे ´पाण्डेय´ का फायदा उठाया और प्रयोगशाला में प्रयोगों में व्यस्त एक लड़की, जिससे उसकी एकाध बार कक्षा में ´कैसी हो´ और ´ठीक हूं´ टाइप की बातें हो चुकी थीं, से कॉपी मांग बैठा। लड़की ने थोड़ी देर सोचा और इस वायदे पर कॉपी उसे दे दी कि कल वह हर हालत में उसे लौटा देगा। कॉपी देते वक़्त उसकी उंगलियां ज्योति पाण्डेय से छू गयीं और उसे लगा कि लड़की ने जानबूझ कर उसे स्पर्श किया है। जब वह उस स्पर्श के नशे में चूर यह सोचता हुआ सायकिल स्टैंड की तरफ जा रहा था कि ज्योति सिन्दूर और साड़ी में कैसी लगेगी, उसे सायकिल स्टैंड के गेट पर तीन लड़कों ने रोक लिया। पास ही एक लड़का बीच वाले स्टैंड पर खड़ी मोटरसायकिल पर सीधा लेटा हुआ था और उसका चेहरा एक हीरो छाप टोपी से ढंका हुआ था।
´´का भईया, का हाल हौ ?´´ तीनों लड़कों में से एक ने पूछा। राजू को ख़तरे की आशंका तो हुयी पर बचने का कोई रास्ता नहीं था।
´´ठीक है।´´ कहकर वह स्टैंड के भीतर जाने लगा।
´´अबे रुको, बहत जल्दी में हो।´´ दूसरे ने उसके पैरों के आगे अपनी लात लगा दी। राजू को मजबूरन रुकना पड़ा।
´´चलो भइया बुला रहे हैं।´´ अब तीसरे ने उसका हाथ पकड़ा और खींच कर मोटरसायकिल पर लेटे लड़के के आगे खड़ा कर दिया। ´´भइया, देखा आ गइलन साहब।´´
लड़का धीरे-धीरे स्लो मोशन में उठा और उस समय अगर पार्श्व में कोई धुन बजती तो पता चल जाता कि लड़के के उठने की स्टाइल में अजय देवगन और अक्षय कुमार के इस तरह उठने का मिश्रण था मानो किसकी मौत आयी है। लड़का उठा और तुरंत जेब से एक सिगरेट निकाल कर मुंह से लगा ली। एक चेले ने खट से माचिस से उस्ताद की सिगरेट जलायी।

´´का हाल हौ गुरू ?´´ लड़के ने राजू से पूछा।
´´ठीक है...भ..भइया।´´ अब तक राजू को लग चुका था कि आज उसको एकाध हाथ ज़रूर पड़ेगा।
´´अउर सब...पढ़ाई वढ़ाई...?´´ लड़के ने उसके मुंह पर धुंआ छोड़ते हुये पूछा।
´´सब ठीक है।´´ उसने संक्षिप्त जवाब दिया और इधर-उधर देखने लगा कि कोई परिचित दिख जाय। उसे लगा काश आनंद और रिंकू बीएचयू की जगर यहीं के छात्र होते तो आज इन लड़कों को कायदे से मज़ा चखाता पर फिलहाल उसका पलड़ा हल्का था।
´´क्लास वलास रेगुलर करला कि नाहीं ?´´
´´हां करते हैं भ भइया रेगु....।´´ उसकी बात पूरी हुयी भी नहीं थी कि एक ज़ोर का चांटा उसके गाल पर पड़ा और वह ज़मीन पर गिर पड़ा।
´´भोसड़ी वाले जब रेगुलर क्लास करऽऽले तऽऽ ओसे काहे बदे कापी मंगले ? क्लसिया में का गांड़ मरवावले ?´´
                राजू ने गाल सहलाते हुये लड़के की ओर देखा जो अब मोटरसायकिल से नीचे उतर चुका था। उसकी जींस काफी महंगी मालूम होती थी और घुटने से फटी थी। फटने में कलात्मकता थी। टी शर्ट से कसरती बाजू झांक रहे थे और कह रहे थे कि सलमान और रितिक का असर अब सिर्फ़ दिल्ली मुंबई तक ही नहीं रहा है। एक चेले ने भईया के बिहाफ़ पर कहा, ´´ज्योती भाभी से काहे बतियाए बे ? तुमको मालूम नहीं वो भईया का माल है ?´´
                राजू गाल सहलाता हुआ उठा और उसे अपने कम सामान्य ज्ञान पर कोफ्त हुयी। मन ही मन लड़के का हुलिया याद करता दिमाग में बैठाता हुआ, उनको कहां और कैसे पीटना है, की रणनीति बनाने लगा। लड़के ने दुबले पतले राजू पर तरस खाते हुये उसे अंतिम चेतावनी के रूप में कॉलर पकड़ कर समझाया, ´´अब आज तो नहीं, कल कॉपी सुबहे सुबह वापस कर देना और देखना हाथ वाथ न छुआय उससे।´´
´´जी...।´´ राजू ने सिर्फ़ एक शब्द कहा। जाते-जाते एक चेला भी सिर पर एक चपत लगाता गया, ´´साले अब दूर रहना उनसे।´´
´´हां साले बताता हूं तुम लोगों को...।´´ राजू कॉलेज से निकल कर सीधा रिंकू के कमरे पर गया था और अगले दिन उन चारों लड़कों की कॉलेज के बाहर पान की दुकान पर हॉकी डंडों से किन्हीं अज्ञात चार लड़कों ने ठुकाई की थी जिनमें राजू शामिल नहीं था।
...तो राजू ने रिंकू का साथ देने के लिये हामी भर दी। रिंकू का प्लान एकदम यूनिक था। राजू को उसका प्लान पसंद आया और उस पर काम करने से पहले उसने रिंकू को इस बात पर सहमत किया कि उसका काम बन जाने के बाद वह अठाइस साल वाली की दोनों छोटी बहनों में से किसी से उसका काम बनवा देगा। रिंकू ने एक सच्चे दोस्त की तरह उसका हाथ पकड़ कर वादा किया।
                शुक्लाइन हर सोमवार, मंगलवार, वृहस्पतिवार, और शनिवार भिन्न-भिन्न मंदिरों में दर्शन करने जाया करतीं थीं और घर में लड़कियों के लिये अनुकूल माहौल छोड़ जाती थीं। रिंकू ने मंगलवार का दिन चुना था क्योंकि राजू ने कहा था कि वह संकटमोचन से पूजा करके सुबह-सुबह आयेगा ताकि काम सही बने। जब शुक्लाइन गंभीरी बाबा का दर्शन करने सुबह-सुबह निकल गयीं और थोड़ी देर बाद शुक्ला जी भी कॉलेज के लिये निकल गये तो योजना पर अमल शुरू हुआ। रिंकू टुन्नू से दुर्गापूजा वाली चंदे की रसीद बुक मांग लाया था। जैसे ही शुक्ला जी अपने स्कूटर पर कॉलोनी से बाहर निकले, दोनों ने दरवाज़ा खटखटाया। रिंकू का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। हालांकि चुम्मा फेंकने और लेने का सिलसिला अब काफी आगे बढ़ चुका था लेकिन फिर भी रिंकू की टांगें कांप रही थीं। उसने एक बार राजू की तरफ देखा और राजू ने दरवाज़ा खुलने से पहले एक बार उसकी हथेली पकड़ कर आंखों से कहा बेस्ट ऑफ लक। दरवाज़ा अनु ने खोला और खोलते ही राजू ने उसे अपने लिये पसंद कर लिया। उसने आंखों में रिंकू की ओर देखा और उसे अपना वायदा याद दिलाया पर रिंकू का ध्यान कहीं और था।
´´घर में कोई बड़ा है ?´´ उसने अंदर झांकते हुये पूछा।
´´मैं क्या आपको छोटी बच्ची दिखायी देती हूं ? बताइये क्या काम है ?´´ उसने रूखी आवाज़ में पूछा तो राजू के सौंदर्यबोध को थोड़ा सा आघात पहुंचा।
´´नहीं....मतलब....मेरा कहने का....।´´ रिंकू लड़खड़ाने लगा कि राजू ने बात संभाल ली।
´´दरअसल हम आण्टी जी से मिलना चाहते थे।´´
´´वो तो मंदिर गयी हैं।´´
´´अच्छा, इस बार की दुर्गापूजा के लिये चंदा लेना था।´´ आमतौर पर चंदे के विषय में सुनते ही बड़े-बड़े आस्तिक भी सूक्ष्म ब्रह्म के उपासक बन जाते थे पर अनु को राजू की आंखें पसंद आयी थीं। उसने मासूम आवाज़ में पूछा, ´´पता नहीं, हो सकता है पापा ने चंदा दे दिया हो।´´ राजू उसकी आवाज़ की मुलायमियत को आमंत्रण समझ कर उसके थोड़ा सा और क़रीब हो गया।
´´देखिये, अगर दे दिया हो तो कोई बात नहीं, घर में पूछ लीजिये।´´
      अनु दीदी दीदी की आवाज़ लगाती घर के अंदर चली गयी। रिंकू का दिल उस रॉकेट की तरह धड़क रहा था जिसकी उलटी गिनती दस से शुरू होकर तीन या दो तक आ पहुंची हो और अब किसी भी पल ज़ीरो हो जायेगी और वह अंतरिक्ष में उड़ जायेगा। सविता दरवाज़े पर आकर खड़ी हो गयी और रॉकेट की गिनती ज़ीरो तक पहुंच गयी। अनु भी पीछे खड़ी थी। अचानक पीछे से शेरसिंह आ गये और अपनी प्राकृतिक घ्राणक्षमता से संभावित खतरे को पाकर ज़ोर-ज़ोर से भूंकने लगे। ´साला इसको नहीं मालूम कि हम लोग इससे बड़े कुत्ते हैं´, बुदबुदाते हुये राजू ने जेब से पारले जी बिस्किट का पैकेट निकाला और दो-दो बिस्किट करके उछालने लगा। ´´ले ले शेरू ले...।´´ शेरसिंह अपने दूसरे प्राकृतिक गुण से बिस्किट खाने और पूंछ हिलाने लगे। इसी पल राजू ने अनु से जो राजू को गौर से दखे जा रही थी, पानी मांगा। अनु पानी लेने भीतर चली गयी।
´´वो....वो मैं चंदा मांगने दुर्गापूजा....।´´ रिंकू सविता की आंखों में नही देख पा रहा था। देख तो सविता भी नहीं पा रही थी लेकिन वह समझ चुकी थी कि समय बहुत कम है और उम्र में बड़े होने के नाते उसे ही कुछ करना होगा। उसने चंदे की रसीद के साथ रिंकू के हाथ को एक बार थामा और फिर छोड़ दिया। रिंकू खड़ा-खड़ा मूर्छित अवस्था में आ गया।
´´मेरा चंदा....।´´ वह नशे की हालत में बड़बड़ाया।
´´तुम्हारा चंदा तुम्हारे सामने तो है।´´
´´अरे साला...।´´ हड़बड़ी में रिंकू के मुंह से निकला। फिर उसने जल्दी से अपने आप को संभाला। 
´´तुम्हारा नाम क्या है ?´´
´´सविता....और तुम्हारा ?´´ वह रिंकू के और पास आते हुये फुसफुसायी।
´´रिंकू।´´
´´रिंकू.....रिंकू ओह रिंकू आय लव यू।´´ वह धीरे से मदहोशी भरी आवाज़ में बोली और अनु को पानी लाता देख अंदर चली गयी।
´´आय लव यू टू।´´ रिंकू ने जो मुंह में बोला उसे किसी ने नहीं सुना सिवाय शेरसिंह के। वह बिस्किट खाना छोड़कर दौड़ते हुए आये और रिंकू पर भौंकने लगे जिसका अर्थ रिंकू ने यह लगाया कि वाकई अंग्रेजी सबसे सहजग्राह्य भाषा है। रिंकू को कुछ सुनायी नहीं दे रहा था। वह वहां से चुपचाप लौटने लगा। राजू ने जल्दी से पानी पीया और गिलास वापस देता हुआ अनु को अपना परिचय दिया।
´´मेरा नाम राजू है...राजू पाण्डेय। बीएचयू में पढ़ता हूं।´´
´´मैं अनु...आर्य महिला में हूं।´´
´´मेरा नम्बर है 370828। आगे दो लगा लेना।´´ इसके बाद वह भी वहां से तेज़ कदमों से निकल आया।

2 comments:

  1. Maja aana tez ho raha hai...bahut sahi hai

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  2. मुझे यह पसंद आ रहा है. में इसे सम्पूर्ण पढ़ पाने के इंतज़ार में हूँ.

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