(दो हजार छह में बनारस में हुए बम विस्फोटों के बाद शुरू हुए इस उपन्यास ने विमल के अनुसार उनकी हीलाहवाली की वजह
से छह साल का समय ले लिया. लेकिन मेरे हिसाब से छह साल के अंदर इस
उपन्यास ने मानवता के लंबे सफर, उसके पतन और उत्कर्ष के जिन पहुलओं को
हमसाया किया है उसके लिए यह अवधि एक ठहराव भर नजर आती है. विमल की भाषा
वैविध्य और कहानीपन से हम परिचित है. इस उपन्यास में विमल ने जिस बेचैन
भाषा के माध्यम से कथ्य की पड़ताल की है वह समाज की अंतर्यात्रा से उपजी
भाषा है. शुरू-शुरू में एकदम सहज, व्यंग्यात्मक और हास्ययुक्त भाषा और कुछ किशोरों के जीवन के खिलंदड़े चित्रण के साथ चलता सफ़र बाद में धीरे-धीरे उसी तरह डरावना और स्याह होता जाता है जैसे हमारी ज़िन्दगी. उपन्यास का नाम 'नादिरशाह के जूते' है लेकिन लेखक इसे लेकर बहुत आश्वस्त नहीं है और यह बाद में बदला जा सकता है. फिलहाल प्रस्तुत है पहला चैप्टर. हर रविवार यह इस ब्लॉग पर किश्तवार प्रकाशित होगा..बाकी बातें पाठको की जिम्मे...-मोडरेटर)
राजू
जब अपनी शादी की बात करके वहां से निकला तो दूर तक सन्नाटा था। इस सन्नाटे को
चीरती हुई दूर कहीं रेडियो में एक लड़की लाख टके का सवाल पूछ रही थी-
सारा-सारा
दिन तुम काम करोगे
प्यार
कब करोगे ?
उसका
सवाल वाजिब था और दलील दमदार-
रात
को तुम आराम करोगे
प्यार
कब करोगे ?
उसका पहले से ही खराब मूड और खराब हो
गया। उसका मन हुआ कि वह इस दुनिया पर थूक दे और बेवकूफ़ों की इस जमात को लात मार कर
कुछ समझदार लोगों, जो
उसे समझदार समझते हैं, के
साथ काला घोड़ा पीये। तब तक पीये जब तक सब कुछ भूल न जाय। मगर वह क्षण तो सबसे दुखद
होता है जिस क्षण उसे लगता है कि वह सब कुछ भूल गया है क्योंकि उसी क्षण कोई सिरा
पकड़ में आ जाता है और फिर सब कुछ आंखों के सामने आ कर खड़ा हो जाता है।
जब वह रिंकू के कमरे पर पहुंचा तो वह
अण्डरवीयर में बेसुध लेटा था। आम दिनों की तरह उसने रिंकू को लात मार कर नहीं
जगाया बल्कि खाट पर एक तरफ बैठ गया। उसे रिंकू पर बहुत प्यार आया। ´´साले दोस्त ही आखिर काम आते हैं।´´ वह मन में बुदबुदाया। जब उसने रिंकू के
माथे पर हाथ रखा तो वह चिहुंक कर जाग गया। लात की जगह प्यार उसे समझ नहीं आया।
उसने लपक कर राजू का मुंह सूंघा।
´´पीये हो क्या बे ?´´
´´नहीं यार, हटो.............पीये नहीं हैं।´´ उसने भारी आवाज़ से कहा और रिंकू को
पीछे धकेल दिया।
´´क्या हुआ बे ?´´ रिंकू
समझ गया कि कहीं कुछ गड़बड़ ज़रूर है। उसी समय उसकी नींद पूरी तरह खुल गयी और उसे
अचानक याद आ गया कि राजू कहां गया था। वह अनायास ही चौकन्ना नज़र आने लगा।
´´बात नहीं बनी क्या गुरू ?´´ उसने
रहस्यपूर्ण ढंग से पूछा।
बदले में राजू ने जूते खोल कर दरवाज़े
के पास फेंक दिये और रिंकू की सबसे नयी शर्ट उतार कर तह कर उसके हाथ में दे दिया।
फिर निढाल उसी जगह लेट गया जहां कुछ देर पहले रिंकू लेटा था।
वह मामला समझ गया। दौड़ कर नीचे गया और
ट्यूबलाइट के छोटे भाई को आनंद को बुलाने भेज दिया। जब वह ऊपर आया तो नल खर-खर
सर-सर की आवाज़ कर रहा था। पानी आने वाला था पर राजू को इस समय छोड़ कर हटना खतरे
से खाली नहीं था....क्या पता क्या करे। रिंकू को याद आया कि उसने कपड़ा भी धोने के
लिये डुबा रखा है पर वह दरवाज़े पर ख़डा रहा और राजू की ओर देखता रहा। हालांकि वह
जानता था कि पूरी तफ़सील वह सुनाना तभी शुरू करेगा जब आनंद आ जायेगा।
शाम के सात बजे थे। पानी आठ बजे चला
जायेगा। इसी एक घण्टे में कपड़ा भी धोना है, पीने और बनाने के लिये भी भरना है और
राजू की दर्द भी बांटना है। साढ़े सात बजे के आसपास, जब हल्का अंधेरा हो जायेगा, अठाइस साल वाली भी अपनी छत पर आयेगी।
उसे लाइन भी मारना है। कितनी ज़िम्मेदारियां हैं उसके ऊपर और ये राजू.........? हर
छह महीने में किसी नई लड़की से चोट खाकर रोने और ग़म ग़लत करने उसके कमरे पर आ जाता
है।
´´जरा एक गिलास पानी देना यार। गला सूख
रहा है।´´ राजू ने अचानक आंखें खोलकर दर्द भरे
स्वर में कहा। रिंकू को उस पर बहुत तरस आने लगा। वह पानी लेने गया और फुर्ती से
पीछे वाली छत पर भी झांक आया। अभी अठाइस साल वाली नमूदार नहीं हुयी थी।
´´गुड़ भी लोगे क्या ?´´
बदले में छटांक भर की जुबान की जगह
पसेरी भर का सिंर हिलाया राजू ने, नकारात्मक
मुद्रा में। पलकें भी बराबर झपक रही थीं।
आनंद
कुछ खाता हुआ कमरे में घुसा। उसके मुंहासे उसे आजकल बहुत परेशान कर रहे थे और वह
हर दस मिनट के बाद अपनी चिंता व्यक्त करने लगता कि अगर इसी रफ्तार से उसे मुंहासे
निकलते रहे तो वह एक दिन ओमपुरी जैसा हो जायेगा।
´´अबे तुम्हारी शकल देख कर लग रहा है कि
बीच लहरतारा में कोई तुमको लथार-लथार कर मारा है।´´ आनंद ने घुसते ही शिगूफा छोड़ा। अपने
दाहिने गाल पर के मुंहासे को नोचते हुये वैसे तो उसके चेहरे पर दर्द के भाव थे
लेकिन अपना पसंदीदा काम यानि किसी को छेड़ते हुये उसके चेहरे पर लाली उतर आयी।
´´यार उंगली मत करो उसको, बहुत दुखी है।´´ रिंकू ने धीरे से आनंद को मना किया
लेकिन राजू ने बात सुन ली थी। धीरे से आंखें खोलीं और रामायण के अरूण गोविल की तरह
बोला, ´´मारा है, समय ने मारा है।´´
आनंद उसकी गंभीर मुद्रा देखकर मौके की
नज़ाकत समझ गया। आकर उसके पास बैठ गया और उसके बोलने का इंतज़ार करने लगा। राजू ने
देखा कि अब ग्रुप के स्थायी सदस्य तो आ ही गये हैं, अब समस्या खोल देनी चाहिये। हालांकि
अनुज गदाई और सुनील की भी कमी खल रही थी ख़ास तौर पर सुनील की, क्योंकि वह पीने के बाद माहौल कभी
बोझिल नहीं होने देता पर फिर भी...। वह सीधा बैठ गया और बोलने से पहले गला खंखारा
ताकि सबको पता चल जाय कि अब कुछ वज़नी बात सुनने को मिलेगी।
´´साला दुनिया में सबसे ताकतवर चीज है
पैसा...........पैसा और कुच्छ नहीं।´´ राजू ने शून्य में देखते हुये कहा।
´´हुआ क्या है, कुछ बताओगे भी ?´´ आनंद
जानता था कि समस्या जल्द से जल्द खोलने के लिये उसे स्वयं को समस्या के प्रति अति
उत्सुक दिखाना पड़ेगा वरना भूमिका बनाने में ही निष्कर्ष तक का समय लग जायेगा।
´´क्या यार रिंकूलाल...........कुछ
व्यवस्था ओवस्था करोगे ?´´ रिंकू पहले से तैयार था इस सवाल के लिये।
´´यार साठ ही रूपये हैं मेरे पास।´´
राजू ने आनंद की ओर देखा। उसने जेब से
पचास का नोट निकाला।
´´लो घर से मिले थे मंजन और साबुन वगैरह
खरीदने के लिये। ले जाओ......कल देखेंगे।´´
´´अरे सामान के लिये मिले हैं तो रहने
दो।´´ राजू कहते हुये भी डरा कि कहीं वह सच में
ही न रहने दे पर आनंद ने नोट जबरदस्ती रिंकू के हाथ में पकड़ा दिया। राजू दु:खी
होने के बावजूद ख़ुश हो गया।
´´जाओ बे ले आओ, सिगरेट दो पैकेट ले लेना। हम घर फोन कर
दिये हैं कि आज रात तुम्हारा जन्मदिन है और आज रात तुम्हारे ही यहां हैं।´´
´´लेकिन दो महीने पहले भी मेरे यहां तुम
मेरा जन्मदिन बोल के ही रूके थे ना...........?´´ रिंकू
को अचानक याद आया।
राजू उदासीन भाव से गमछा लपेट कर
बालकंनी में आ गया। ´´अबे
ठीक है वो सर्टिफिकेट से था, ये
असली है।´´
रिंकू बालकंनी में गया और बाल झाड़ने
लगा। बालकंनी में बाल झाड़ने का एक ही मतलब था कि अठाइस साल वाली के छत का जायज़ा
लिया जाय। उसी दौरान वह छत पर आ भी गयी। रिंकूलाल ने बाल झा़डते हुये ही कनखियों
से अगल बगल देख कर एक हवाई चुम्मा फेंक दिया। अठाइस साल वाली ने हवा में ही चुम्मे
को कैच किया और अपनी समीज को थोड़ा खींचकर अंदर यानि अपने दिल में जगह दे दी। रिंकू
का पूरा शरीर गनगना उठा और वह कल्पना करने लगा कि उसने सीधे उसके कसे हुये सीने पर
चुम्मा लिया है। तभी अंदर से आनंद की आवाज़ आयी।
´´जल्दी जाओ यार। बालकनी में ही कहां अटक
गये ?´´
´´हां हां, जा रहे हैं।´´ रिंकू उसे थोड़ी देर में आने का इशारा
कर के चला गया।
जब
वह लौटा तो टुन्नू और अनुज गदाई भी आ गये थे। माहौल पूरी तरह ग़मगीन था।
पैग बनाये जाने लगे। दूसरा पैग हलक से
नीचे उतरते ही सबके अंदर सिहरन सी दौड़ने लगी। शराब पीना इन्हें अपनी नज़रों में
महत्वपूर्ण बना रहा था। हालांकि इन्होंने जल्दी ही शुरू किया था पर जब भी पीते, खुद को अपनी उम्र से बड़ा महसूस करते।
अब मुख्य अतिथि राजू कुछ बोलना शुरू
करे इसके पहले ही टुन्नू ने बातों के कार्यक्रम का फीता काटते हुये गहरी आवाज़ में
कहा, ´´एक बात नोट कर लो, लिख लो। बनारस में लड़कियां सिर्फ़ गदाइयों से पटती हैं। जितने भी कायदे
के लड़के हैं, देख लो हमेशा अकेले घूमते रहते हैं।´´
इस बात का प्रतिवाद करते हुये अनुज, जो मित्रों द्वारा अपने नाम के आगे
गदाई लगा देने से अपने को वाकई गदाई मानने लगा था और यह उसके गदाईपन का सबसे बड़ा
नमूना था, ने ऊंची आवाज़ में कहा, ´´कहां पटती है बे, देख लो हमको। तुम लोग जो हमको जो है
गदाई कहते हो और हमसे जो है आज तक एक्को लड़की नहीं पटी।´´ यह कहते हुये उसके चेहरे पर अपार पीड़ा
और लड़की पटाने वालों के लिये ईर्ष्या उतर आयी।
टुन्नू ने एक और प्रवृत्ति की तरफ़
ध्यान आकर्षित किया।
´´एक बात और है जो लोग लड़कियों के पीछे
भागते रहते हैं लड़कियां उनसे भागती रहती हैं जबकि....।´´
मुख्य अतिथि का आकर्षण दूसरों को
चुराते और चर्चा का विषय दूसरी ओर मुड़ता देख राजू को गुस्सा आ गया। उसने दो की
सज़ा पूरे ग्रुप को दी, ´´साले
छोटी सोच....।´´
यह तीन शब्द बोल कर वह चुप हो गया। सभी
हिंदी माध्यम के विद्यार्थी थे, राजू
को अच्छी तरह समझते थे और गुलाबी नशे में थे इसलिये तीनों शब्दों से एक सार्थक
वाक्य की रचना कर ली गयी और एक सन्नाटा सा कमरे में छा गया।
´´जाने दो बे.....जो हो गया सो....।´´ आनंद ने ज्वालामुखी के मुहाने में
ऊंगली की।
´´क्या जाने दें यार क्या जाने दें...?....वह
लड़की मेरे लिये टाइमपास नहीं थी...वह मेरी ज़िंदगी थी.....तुम्हारी भाभी थी। उसकी
मां बहुत अच्छी है। वह हम लोगों का प्यार समझती है पर उसका बाप......माधड़चोद...।´´
रिंकू वार्ता बीच में छोड़ कर उठा और
दाहिने हाथ की कानी ऊंगली दिखाता हुआ पीछे की बालकंनी में चला गया। बाथरुम में
बाल्टी भर कर गिर चुकी थी और पानी नीचे गिर रहा था। उसने नल बंद किया और एकदम
किनारे खड़े होकर बिल्ली की आवाज़ निकाली................´´ म्याऊऊऊं .....।´´
आवाज़ में काफ़ी लड़खड़ाहट थी मानो बिल्ली
ने अफ़ीम खा रखी हो। जब थोड़ी देर तक छत पर कोई नहीं आया तो बिल्ली ग़ुस्से में बोली, ´´ म्याऊंऊंऊंऊऊंऊंऊंऊंऊं ...?´´ आवाज़
के अंत में ऐसा लगा बिल्ली उल्टी कर देगी।
अचानक छत पर अठाइस साल वाली दबे कदमों
से नमूदार हुयी। उसने दोनों हाथों से दो चुम्मे रिंकू की तरफ़ फेंके। रिंकू ने पकड़
कर उसे हमेशा की तरह शर्ट की जेब में या सीने में रखने की बजाय अपने पैण्ट के अंदर
डाल दिया। अठाइस साल वाली शरमा गयी। इठला कर उसने अपनी गर्दन दाहिनी तरफ़ घुमायी
जिससे पूरा सीना हिलता हुआ दाहिने हो गया। फिर उसने गर्दन और इसके साथ पूरा शरीर
बांये घुमाया। अभी इठलाने में एक दो और सेट बचा था कि रिंकू को ओवरडोज़ हो गया। वह
ऐसी आवाज़ में,
जिसे शराबी धीमी आवाज़ कहते हैं, अचानक गाने लगा-
´´ओ जानेमन आजा-आजा,
तू
लगती क्या मस्तानी है।´´
उसे लगा अठाइस साल वाली, ओ जानेमन पागल है तू, मुझपे
यूं मरता है क्यूं´ गाकर
उसके उदास बंजर एकल गीत को युगल बनायेगी पर वह गाना शुरू होते ही धड़धड़ा कर नीचे
उतर गयी। रिंकू के गीत की चिंगारी अंतरे पर आने से पहले ही बुझ गयी और वह बुझे
क़दमों से कमरे में आया जहां संसद की तरह नीरस और बेनतीजा बकवास चालू थी।
´´..................मैंने सिर्फ़ इतना ही कहा कि अंकल जी आप कविता की
शादी सिर्फ़ तीन साल के लिए रोक दीजिये............
सिर्फ़ दो साल के लिये.....फिर मैं आपको वह बन
कर दिखाउंगा जो आप चाहते हैं.....मेरी बी.एससी. हो जाय बस्स....फिर जो आप....।´´
हूँ...हूं...कहते
हुये सभी लोग चुपचाप गिलास में से चुस्की मार रहे थे और एक घूंट पीते ही कड़वाहट के
मारे गंदा मुंह बना कर जल्दी से एक मुट्ठी नमकीन मुंह में झोंक ले रहे थे। शराब का
स्वाद बहुत कड़वा था लेकिन कोई इस बात को भरी महफि़ल में स्वीकार करने को तैयार
नहीं था। कुछ कहते ही बगल में बैठा व्यक्ति कहने लगता-अबे भाई साहब को दूध पिलवाओ।
मर्दों वाली ड्रिंक पीने का दम नहीं इनको....। कोई राजू को सांत्वना देकर अपना
माथा गरम करवाने के पक्ष में नहीं था। अनुज गदाई इस बार भी औरों से ज़्यादा गदाई
साबित हुआ।
´´जाने दो यार। अब जो है भूल जाओ
उसको....अभी आगे बहुत जिंदगी पड़ी है जो है..........आखिर कितना आंसू बहाओगे उसके
लिये.....?´´
´´साले तुम पागल हो गये हो क्या ? अरे
उसको भूल जायं तो आगे जो जिंदगी पड़ी है उसका करेंगे क्या ? यार
हमेशा सच्चे प्यार के पीछे भागते रहे कि अब मिले अब मिले और मिल गया तो छोड़ दें ? तुम्हीं
बताओ अगर वही न मिले जिसके लिये सांस ले रहे हो, तो आगे क्यों जीना बे ?´´
´´हूं....सही कह रहे हो।´´
´´हम हमेशा सही कहते हैं।´´ राजू का ओवर कांफि़डेंस अनुज को हड़काने
के बाद आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गया था। अचानक उसे महसूस किया कि वातावरण में जो दुख
घुल रहा है उसे दर्द भरे गीतों से और बढ़ाया ओर दुख को और कलात्मक बनाया जा सकता
है। उसकी नज़र रिंकू के टूटे हुये वॉकमैन पर गई और फिर रिंकू पर।
´´कुछ सुनाओ यार........।´´
´´क्या..........?´´ दर्द
रिंकू के सीने में भी था जो आवाज़ से साफ़ ज़ाहिर था।
´´कुछ भी दर्द भरा....।´´
जवाब
में जो दर्दभरा गीत रिंकू ने गाना शुरू किया उससे साफ़ ज़ाहिर था कि भले ही इस रात
का नायक राजू है, रिंकू
सहनायक से कम क़तई नहीं है।
´´इक हवा का झोंका आया
टूटा
डाली से फूल....टूटा डाली से फूल
न
पवन की ना चमन की
किसकी
है ये भूल....किसकी है ये भूल
उड़
गई............ई
उड़
गई खुशबू हवा में कुछ न रह गया।
मेरा
जीवन कोरा कागज़ कोरा ही रह गया।
तभी दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी।
फटाफट गिलास छिपाये जाने लगे। सबने गमछा लपेटा, पत्रिकाएं खोलीं, चेहरे पर असामान्य मेहनत कर सामान्य
भाव लाये और चौकन्ने होकर बेपरवाह होने की एक्टिंग करने लगे। फिर रिंकू को दरवाज़ा
खोलने का इशारा किया गया। सामने ट्यूबलाइट के पापा थे।
´´नमस्ते अंकल.........।´´ रिंकू ने एकल गाया। सबने पीछे से कोरस
किया।
´´नमस्ते नमस्ते.....और रिंकू....?´´ अंकल
जी ने सबके चौकन्ने चेहरों पर नज़र डाली, वातावरण में फैली गंध को सूंघा और नोस्टालजिक होकर धीमी उदास आवाज़
में बोले, ´´अखबार नहीं दिये न आज वाला ? जरा
देना।´´
रिंकू ने झट अखबार देकर दरवाज़ा बंद कर
लिया। रुकी हुयी फि़ल्म फिर से चलने लगी लेकिन इस बार रिंकू का गाने का मन नहीं
था।
´´हम नहीं गाएंगे। साले एक तुम्हीं दुखी
नहीं हो। हर आदमी दुखी है। आस-पास देखों अपने, सब दुखी नजर आयेंगे।´´
राजू ने अपने आस-पास देखा। सबसे पास
रिंकू ही नज़र आया। जब रिंकू ने समझ लिया कि राजू ने आस-पास का मतलब समझ लिया है
तो उसका चेहरा और दुखी नज़र आने लगा जिसका निष्कर्ष उसने यह निकाला कि दारू पीना अच्छे अभिनय में मददगार साबित होता है।
´´तुम क्यों दुखी हो रहे हो
यार.....तुमको ट्यूबलाइट पसंद है न ? हम समझ रहे हैं। उस तरह तो हमको लांचर
भी बहुत पसंद है। हम उस तरह के प्यार की बात नहीं कर रहे हैं। वह वासना
है.....मेरा प्यार सच्चा प्यार है। जिंदगी भर साथ निभाने वाला प्यार....।´´ राजू ने यथासंभव बात को सरल शब्दों में
उसे समझाया जो आज उसके दुखी होने के एकाधिकार को चुनौती दे रहा था।
´´साले तुम्हारा प्यार सच्चा प्यार....और
हमारा प्यार वासना...?´´ रिंकू भड़क गया।
´´भोसड़ी के तुम कविता के प्यार की तुलना ट्यूबलाइट
से कर रहे हो जिसकी चड्ढी चुरा कर रोज मुट्ठ मारते हो....।´´ राजू वाकई आपे से बाहर हो गया। उसे लगा
दोस्तों से कभी सुहानुभूति की उम्मीद ही नहीं करनी चाहिए। सभी हतप्रभ थे। आनंद ने
कम पी थी इसलिये उसने अपना कर्त्तव्य समझते हुये हस्तक्षेप किया।
´´अबे यार, तुम साले ट्यूबलइटवा को भाभी से जोड़
रहे हो ?´´ थोड़ा गुस्सा उसे भी आया था और थोड़ा वह
भाभी के प्रति सम्मान दर्शाने की नीयत से कर रहा था।
´´ट्यूबलाइट नहीं यार....।´´ रिंकू का मुंह लाल हो गया जैसे वह
शर्माना चाह रहा है पर समझ नहीं पा रहा है कि पहले बात बता ले तब शर्माए या पहले
शरमा ले तब बात बताए।
´´फिर कौन....?´´
सबके कान उत्तेजित हो गये। राजू भी
जिज्ञासा को दुख पर हावी होने से नहीं रोक पाया। कितना भी बड़ा आघात लगा हो, किसी नई लड़की का ज़िक्र हमेशा उससे बड़ी
घटना होती है।
´´तब कौन....?´´
बदले में रिंकू ने शरमाते हिचकिचाते जो
कहा उसका सारांश उस लड़की से था जो उसकी बालकंनी के सामने रहती है, रिंकू से कुछ नहीं तो छह-सात साल बड़ी
है, महा कर्मकाण्डी शुक्लाजी की संभवत:
तीसरे नम्बर की बिटिया है और अंतिम जानकारी मिलने तक उसका नाम अज्ञात है।
´´साले दिमाग खराब है ? सुकुलवा
को पता चलेगा तो गांड़ में गोली मारेगा।´´ अनुज गदाई ने बहुत देर बाद हस्तक्षेप किया
और टुन्नू ने उसकी हां में हां मिलायी।
´´चाहे गोली मारे या तलवार से काटे, मेरा प्यार सच्चा है........।´´ रिंकू ने रात का आकर्षण चुराते हुये
पैर फैला लिया। राजू ने उसकी हथेली पर हाथ रखा, जिसका मतलब था, हर दुख में दारू पिला कर गाना गाने
वाले मेरे दोस्त, घबरा
मत, मैं तेरे साथ हूं।
बहुत बधाई ! मै भी आपके ब्लॉग की प्रतीक्षा में ही था .और शुरुवात मेरे प्रिय रचनाकार विमल से ,मजा आ गया ! आशा है बेहतरीन चीजें पढने को मिलती रहेंगी .शुभकामनायें !
ReplyDeleteBhaiya sunday ka intezar rahega pura padhane ke liye.........
ReplyDeleteAise gadai ka matalab kya hai? Bimal bhaiya ka pic to kisi art pic ka main actor ke jaisa lag raha hai.
Chandan Pandey says
अच्छी शुरुआत. बहुत बहुत बधाई उपन्यास के लिए. अगर लगातार लिखा जाए तो कितना, ग़ुणात्मक और मात्रात्मक, लिखा जा सकता है, आपने इसकी मिसाल रखी है. उपन्यास को सामने आने दीजिए, बात होगी पर सर्वाधिक प्रशंसनीय है - लगातार लेखन. बधाई, इसलिए भी.
mast hai
ReplyDeletegadayi ek tarh se banarsi gali hai... mote taur banarshi baadmaash ko kaha jata hai....
ReplyDeletegadai gaali nahi hai....ye ek common shabd hai jise banarasi launde apasi baatcheet me use karte hai....
ReplyDeletepahli kisht padhi bahoot maja aaya.....main to banaras ho aaya....
ReplyDeleteविद्यानाथ गदाई के बारे में जानकरी देने के लिए आपको बहुत बहुत शुक्रिया...
ReplyDeletePadh Kar Maza aya lekin galiyon ka prayog bahut hua hai...
ReplyDeleteबढ़िया पूरे उपन्यास का इंतजार......। फिलहाल बधाई और शुभकामनाएं........
ReplyDelete