चलते चलते थम जाने की आदतें
उड़ते उड़ते गड़ जाने की चाहतें
बहते बहते सूख जाने की हसरतें
बनते बनते मिट जाने की कुव्वतें.
ये चंद निशानियाँ हैं
ये चंद कुर्बानियाँ हैं
जो मिटा के भी बना डाले
जो धूल में महका डाले
जो उजालों को झुका डाले
जो अंधेरों को उठा डाले
जो नाम से जुड़ते नहीं
जो सलाम से जुड़ते नहीं
जो धुन में ही चलते हैं
हर वक्त रमे लगते हैं.
जो इंसान हैं मगर औरों से नहीं
जो भगवान हैं मगर औरों से नहीं.
No comments:
Post a Comment