Friday, November 9, 2012

विमल चंद्र पाण्डेय का उपन्यास : सातवीं किश्त



(दो हजार छह में बनारस में हुए बम विस्फोटों के बाद शुरू हुए इस उपन्यास ने विमल के अनुसार उनकी हीलाहवाली की वजह से छह साल का समय ले लिया. लेकिन मेरे हिसाब से छह साल के अंदर इस उपन्यास ने मानवता के लंबे सफर, उसके पतन और उत्कर्ष के जिन पहुलओं को हमसाया किया है उसके लिए यह अवधि एक ठहराव भर नजर आती है. विमल की भाषा वैविध्य और कहानीपन से हम परिचित है. इस उपन्यास में विमल ने जिस बेचैन भाषा के माध्यम से कथ्य की पड़ताल की है वह समाज की अंतर्यात्रा से उपजी भाषा है. शुरू-शुरू में एकदम सहज, व्यंग्यात्मक और हास्ययुक्त भाषा और कुछ किशोरों के जीवन के खिलंदड़े चित्रण के साथ चलता सफ़र बाद में धीरे-धीरे उसी तरह डरावना और स्याह होता जाता है जैसे हमारी ज़िन्दगी. उपन्यास का नाम 'नादिरशाह के जूते' है लेकिन लेखक इसे लेकर बहुत आश्वस्त नहीं है और यह बाद में बदला जा सकता है. हर शुक्रवार यह इस ब्लॉग पर किश्तवार प्रकाशित होता है..प्रस्तुत है सातवीं  किश्त ...अपनी बेबाक टिप्पणियों से अवगत कराएँ ..-मोडरेटर)



12.

ग्रुप के मुख्य सदस्य राजू और रिंकू के रोल मॉडल धीरूभाई अम्बानी और रितिक रोशन थे जबकि आनंद और सुनील शाहरूख खान और अमिताभ बच्चन के मुरीद थे। ग्रुप के अस्थायी सदस्य टुन्नू और अनुज गदाई की को हीरो की जगह हीरोइनें पसंद थीं और वे दोनों आश्चर्य करते थे कि लड़कों की पसंद लड़के कैसे हो सकते हैं। इस पर स्थायी सदस्यों का कहना था कि हमें अपने रोल मॉडल सावधानी से चुनने चाहिये क्योंकि अंतत: हम वैसा ही बनने की कोशिश करते हैं (साभार: शिव खेड़ा, जीत आपकी)।
इस बात को बाकी लोग चूतियापा कह कर टाल जाते थे।
            एक दिन कुछ अंतराल के बाद फिर से ग्रुप डिस्कशन हो रहा था। टॉपिक बहुत सरल था ´रिज़र्वेशन-गुड ऑर बैड फॉर सोसायटी´, मगर थोड़ी देर बाद पाया गया कि चर्चा कहीं की कहीं मुड़ गयी है। आनंद और सुनील का ग्रुप आरक्षण के विपक्ष में था और राजू और रिंकू का पक्ष में। कुछ देर बाद आवाज़ें तेज़ हो गयी थीं और बातों की मस्ती की जगह तल्खी ने ले ली थी।
´´यू वाण्ट टु से दैट यू आर सैटिस्फाइड विद द करेण्ट सिचुएशन ऑफ द कण्ट्री ?´´ यह रिंकू था जिसकी आवाज़ आश्चर्य से भरी हुयी थी।
´´आफकोर्स आय एम। एवरी नेशन हैज़ सम पॉज़िटिव एण्ड निगेटिव आस्पेक्ट्स बट वी शुड लुक फॉरवर्ड एण्ड ट्राय टु सी दैट हाउ ऑवर कण्ट्री इज़ डेवलपिंग दीज डेज...।´´ आनंद ने दलील दी।
´´दी ग्रोथ...अं रेट इज इम्प्रूविंग....।´´ सुनील ने अचानक मार्के की बात कह दी और आनंद की आंखों में उसके लिये प्यार उतर आया जिस पर सुनील उत्साहित हो गया और उसे लगा कि दोस्तों का समर्थन और प्यार उसे लगातार मिले तो वह कभी न कभी धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल सकता है।
´´व्हाट ग्रोथ रेट.....डू यू बिलीव इन द स्टेटमेण्ट ऑफ द प्राइम मिनिस्टर व्हेन ही सेज दैट ऑवर कण्ट्री इज गोइंग अहेड ऑफ द टाइम...। दे नेवर फोकस ऑन द रीयल प्रॉब्लम्स ऑफ द नेशन्स एण्ड....।´´ रिंकू ने तल्खी से बात काटी तो आनंद से रहा नहीं गया।
´´डेफिनेटली आई बिलीव दैट माइ कण्ट्री इज डेवलपिंग एण्ड व्हाट माइ प्राइम मिनिस्टर सेज इज राइट। बिकॉज ही इज माइ प्राइम मिनिस्टर एण्ड दिस इज माइ कण्ट्री। एण्ड इफ यू ऑल्सो बिलीव दिस इज योर कण्ट्री, यू शुड आल्सो बिलीव व्हाट अंवर लीडर्स एण्ड अवर कांस्टीट्यूशन सेज....।´´
´´व्हाट डू यू मीन बाय इफ आइ ऑल्सो बिलीव दिस इज माइ कण्ट्री....इज देयर एनी स.....स......सस्पिशन ?´´ रिंकू की आवाज़ थोड़ी सी लड़खड़ा गयी थी।

´´नो सस्पिशन इफ यू बिलीव....।´´ आनंद अपनी बात पर अडिग था। राजू ने प्रतिवाद किया।
´´आनंद यू आर जस्ट टेकिंग दिस डिस्कशन टू द अनोदर डायरेक्शन एण्ड यू आर टाकिंग शिट...।´´ राजू की आवाज़ में गुस्सा था।
´´व्हाय शिट....टिल व्हेन वी वुड बी अवायडिंग दीज इम्पोर्टेंट क्वेशचन्स....।´´ आनंद की आवाज़ तेज़ हो गयी और उसने समर्थन पाने के लिये अपने साथी की तरफ़ देखा। सुनील सारी बातें समझ चुका था और हतप्रभ था और इस चर्चा में भागीदारी करने के लिये अच्छे तर्क नहीं खोज पा रहा था। जब अच्छे तर्क उसे सूझ भी जाते तो उनका अनुवाद कठिन होता था।
´´यू आल आर फकिंग द लॉ....।´´ उसने कहा और झल्ला कर उठ खड़ा हुआ। आनंद ने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की तो उसने झटका देकर छुड़ा लिया।
´´व्हेयर आर यू गोइंग ? गोइंग अवे इज नॉट द सॉल्यूशन।´´ आनंद ने कहा।
´´या...वी आर डिस्कसिंग अ सीरीयस इश्यू।´´ राजू ने कहा तो सुनील ने रिंकू के चेहरे की ओर देखा जो चुपचाप बैठा था और उसके चेहरे पर रोज़ से अलग भाव थे।
´´यू आर जस्ट फकिंग द लॉ।´´ सुनील ने तमतमायी आवाज़ में कहा।
´´व्हाट डू यू मीन बाइ फकिंग द लॉ.....वी आर नॉट एबल टु अंडरस्टैंड।´´ आनंद ने राजू को अपने साथ मिलाते हुये सुनील से भी तेज़ आवाज़ में प्रश्न पूछा और कमरे में तल्खी भरा सन्नाटा छा गया। सुनील का दिमाग विद्रोह कर बैठा।
´´भोसड़ी वालों तुम लोग कानून चोद रहे हो बिना मतलब का। इहां बइठे हो जीडी करने की एक दूसरे की गांड़ मारने ? हमको नहीं करना अंग्रेजी ठीक जाओ गांड़ मराओ।´´ सुनील ने अपनी बात समझाने के लिये उस भाशा का सहारा लिया जिसमें वह सबसे कम्फर्टेबल महसूस करता था और इसके लिये उसने अपनी ही शैली भी प्रयोग की। बोल कर उसने अपना बोझ हल्का किया और बालकनी में चला गया। एक बालकनी में कपड़े सुखाती एक नवयौवना पर वह फोकस करने वाला ही था कि कमरे से बुरी तरह से हंसने की आवाज़ें आने लगीं। उसने धीरे से गर्दन पीछे घुमायी। रिंकू, आनंद और राजू ज़मीन पर और चौकी पर लोट-लोट कर बुरी तरह हंस रहे थे। वह कमरे में आया तो हंसी की आवाज़ें और तेज़ हो गयीं।
´´बेटा आज चाय चूय कराओगे तुम बाकायदा....।´´ रिंकू ने हंसते हुये कहा तो उसके दिमाग में बत्ती जली।
´´साले ये तुम लोगों की चाल....?´´ उसकी उलझन भरी आवाज़ सुनकर हंसी की आवाज़ें और तेज़ हो गयीं।
´´मुझे चूतिया बनाना तय रहा होगा मगर वे डाइलॉग तो असली लग रहे थे। क्या डाइलॉग भी पहले से तय थे ?´´ उसने फाटक की ओर जाते हुये राजू से तब पूछा था जब आनंद और रिंकू थोड़ा आगे चले गये थे।
´´नहीं नहीं कुछ भी तय नहीं था ऐसा बस इतना की तुमको मूंड़ना है आज। बाकी सब तो होता चला गया....।´´ राजू ने कहा और चुप हो गया। सुनील भी चुपचाप चलने लगा। उसे चाय सिगरेट में पैसे खर्च होने का दुख नहीं हो रहा था। उसका मन बार-बार बहस में उठने वाले बिंदुओं की ओर चला जाता था।

13.

सभी दोस्तों के अथक प्रयास (घर वालों को बेवकूफ़ बना कर पैसा झटकने के) और अपनी सारी जमा पूंजी बटोर कर जो मोबाइल रिंकू ने पूरी मण्डली के साथ जाकर ख़रीदा था वह आवाज़ के साथ वीडियो की भी रिकॉर्डिंग करता था और उसमें इस छत से उस छत तक ज़ूम करने की भी सुविधा थी। यह मोबाइल दुनिया मुट्ठी में करने की सलाह देता था और प्रेमियों के लिये इसके पास एक से एक सुविधाएं थीं जिनमें से एक थी एकमुश्त कुछ रकम रिचार्ज के नाम पर स्वाहा कर देने पर अपने प्रिय से चौबीस घंटे मुफ़्त बातचीत। रिंकू और सविता छतों पर इशारेबाज़ी और कागज़ फेंकने के अलावा एकाध बार रास्ते में कुछ सेकेण्ड के लिये मिल पाये थे और ´आई लव यू´ कह देने के बाद जितनी बातें हो पायी थीं, उनमें यह मुख्य था कि बिना मोबाइल के बातें हो पाना और प्रेम परवान चढ़ना असंभव है। रिंकू ने चौबीस घंटे कॉल फ्री का फायदा उठा लिया था और उसकी दुनिया वाकई उसकी मुट्ठी में आ गयी थी।
    मोबाइल आ जाने से रिंकू की दिनचर्या पूरी तरह से बदल गयी थी। सुबह मोबाइल पर सविता की आवाज़ सुनने से होती और रात उसकी वर्चुअल बाहों में गुड नाइट के साथ। सविता को थोड़ी दिक्कत ज़रूर होती क्योंकि उसका मोबाइल घर का मोबाइल था और उसे हर बार बात करने के बाद कॉल रजिस्टर में जाकर रिसीव और मिस कॉल्स डिलीट करनी पड़ती थीं। बातें ऐसी होती थीं जिनमें आम तौर पर किसी तीसरे को कोई दिलचस्पी नहीं हो सकती थी। कभी-कभी दिलचस्पी वाली बातें होतीं तो आवाज़ अपने आप बहुत धीमी हो जाती, इतनी धीमी कि बगल वाले को चिंता होती कि जब मुझ तक आवाज़ नहीं पहुंच रही तो फोन के उस पार वाले इंसान के पास कैसे पहुंच रही होगी।
            राजू और सुनील जब रिंकू के कमरे पर पहुंचे तो वह रोज़ की तरह फ़ोन पर लगा था। दरवाज़े कर खटखट सुनकर उसने दरवाज़ा खोला और दोनों को चौकी पर बैठने का इशारा कर इधर उधर टहलता बातें करने लगा। राजू ने उसे नींबू थमाया तो उसने आंखों आंखों में अनुनय की कि चाय वे ही लोग चढ़ा दें। राजू मुस्कराया और चाय चढ़ा आया। सुनील ने चूय सुलगायी और कश खींचने लगा। रिंकू के हाथ बढ़ाने पर उसने कहा, ´´अरे गंदे लड़के, तुम सिगरेट मांग रहे हो ?´´ रिंकू सिगरेट शब्द सुनकर घबरा गया और बालकनी में निकल गया।
´´कुछ नहीं वो सुनील आया है न, वही कुछ मज़ाक कर रहा है।´´ दोनों दोस्त चौकी पर ओलर गये और बालकनी में चल रही प्रेम चर्चा का आनंद उठाते रहे।
´´अरे ऐसे ही....कुछ खास नहीं।´´
´´हां और क्या...।´´
´´चावल और सब्ज़ी।´´
´´चावल बनाने में आसान होता है न इसलिये। तुम क्या खायी हो आज ?´´
´´अरे वाह मस्त।´´
´´कौन सोनिया ?´´
इसके बाद रिंकू कुछ मिनटों तक सिर्फ़ हंसता रहा जिससे पता चला कि अगले छोर वाला व्यक्ति कोई मनोरंजक किस्सा सुना रहा है। राजू और सुनील को भी वह किस्सा सुनने की उत्सुकता हुयी। दोनों दो ओर से रिंकू के कान के पास कान सटाने की कोशिश करने लगे। रिंकू अलग होने की कोशिश करने लगा। इस छीना-झपटी में फोन हाथ से छूट कर नीचे गिर गया।
´´छिनरो के सुने न देबा त इहे होई...।´´ सुनील ने अपनी हथेली देखते हुये कहा जिस पर खरोंच आ गयी थी।
´´भोसड़ी के बकचोद हो क्या एकदम्मे ? देख रहे हो पर्सनल बात कर रहे हैं....।´´ रिंकू ने बात ख़त्म करते हुये फोन उठाया तो यह पाकर हैरान रह गया कि फोन अभी कटा नहीं था और उधर से हैलो हैलो की आवाज़ आ रही थी।
´´हां हैलो अरे यार वो फोन....।´´
´´अरे सुनो तो हम नहीं बोले हैं...अरे।´´ रिंकू के चेहरे पर मातम छा गया और वह चुपचाप आकर अंदर बैठ गया। तब तक राजू अंदर से चाय छान लाया था।
तीनों के हाथ में एक-एक गिलास थी और तीनों धीरे-धीरे सिप ले रहे थे।
´´अबे हुआ क्या ?´´ राजू ने धीरे से पूछा।
´´बोली आप कितनी गंदी गालियां देते हैं। हम बोले की सुनील ने गाली दी है लेकिन वह कही कि आपकी आवाज़ थी। उसको बनारस एकदम अच्छा नहीं लगता क्योंकि यहां लोग गालियां बहुत देते हैं। वह बोली कि आप तो बहुत गंदे हैं ‘भो’ वाली गाली भी देते हैं और फोन काट दी।´´
            राजू और सुनील को हंसवास लगी थी लेकिन रिंकू का मुंह देखकर वे चुप रहे और चाय पीते रहे।
´´अबे मान जाएगी एकाध दिन में नहीं तो छत्ते पर से एक ठो चाकलेट फेंक देना।´´ राजू ने आयडिया दिया।
´´आधा खा के फेंकना....।´´ सुनील से रहा नहीं गया और उसने बत्तीसी खोल दी।
´´भोसड़ी के बहुत हरामी हो तुम।´´ रिंकू ने उसकी ओर घृणा से देखा।
´´देखो रिंकू जी सही में भो वाली गाली दे रहे हैं।´´ सुनील ने राजू की ओर देखा तो वह भी अपनी हंसी नहीं रोक पाया और दोनों बुक्का कहां होता है, यह जाने बिना उसे फाड़ कर हंसने लगे। दोनों की हंसी देख कर रिंकू भी हंस तो दिया लेकिन उसके मन के एक कोने में यह चिंता चल रही थी कि आखिर उसे मनाएगा कैसे।

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